नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब बाबा अनंत में लीन हो गए
शायद अभी तक यह केवल मोह की स्थिति थी हमारी महाप्रभु की लीलाओं का प्रभाव-मात्र परन्तु इस मोह ने ग्यारह सितम्बर, १९७३ की सन्ध्या से (जब हमें इलाहाबाद में आराध्यदेव द्वारा वृन्दावन के अस्पताल में महासमाधि ले लिये जाने का हृदयविदारक समाचार मिला था) एक अकथ विरहाग्नि का स्थान ले लिया जिसकी ज्वाला का ताप असह्य हो उठा ।
इस उल्कापात के कठिन आघात के कारण उत्पन्न हुई अपनी निराधार, असहाय अवस्था में महाप्रभु की विगत लीलाओं की स्मृतियों (जो मन-मानस में छन-छन कर एक के बाद एक उतरती चली गई) उनका हमारे प्रति अपनत्व, उनके प्रेम, वात्सल्य की याद ही अब एक मात्र जीवनाधार रह गई ।
और उन्हीं के विवेचन में ही १२ सितम्बर से २६ दिसम्बर १६७३ तक कार्यालय से अवकाश की अवधि व्यतीत हो गई जिसके मध्य महाराज जी की स-शरीर उपस्थिति में (उनकी भ्रामक लीलाओं एवं प्राकृत आचरण तथा अपनी भी अल्पबुद्धि के कारण) जो प्राप्त न हो सका था, वह धीरे धीरे निर्गुण में प्रविष्ट बाबा जी महाराज की दया-कृपा के फलस्वरूप हृदयांतर होने लगा - स्पष्ट से स्पष्टतर होता- यथा, उनकी लीलाओं में निहित सार, उनकी करुणा-दया-क्षमा की छवि, उनके मूल तत्व की अनुभूति, उनके अवतार का मूल - और साथ में उनके नये नये रूप-स्वरूप । उनके श्री मुख के अपने प्रति वचन कि,"तुम तो घर के ही हो, तुम्हारी बात और है", बारम्बार मन मानस में नाद-सा करने लगे ।
और इस नैसर्गिक धारा का प्रवाह बाबा जी महाराज की प्रतिनाया स्वरूप श्री सिद्धी मां के र्का आधार पाकर कालान्तर में और भी प्रगाढ़, वेगपूर्ण होता चला गया ।
अनंत कथामृत