नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: दूर जर्मनी में बैठे शिष्य को लिखवाया पत्र...गाड़ी मत ख़रीदना!
मैं बैंक की ओर से जर्मनी स्पेशल ट्रेनिंग के लिए गया हुआ था । तीन चार हफ्ते बीत चुके थे । पत्नी के पत्रों से मालूम हुआ कि दया निधान बाबा महाराज हर पखवारे मेरे कानपुर के मकान में पहुँच बच्चों को दर्शन दे आते थे । एक दिन सुबह ही आ गये और मेरी पत्नी से बोले, “गण्डा को चिट्ठी लिख दे कि वह जो कार खरीदने वाला है न खरीदे । वरना बड़ी दुर्घटना हो जायेगी ।” कहकर चले भी गये, पर तीन घंटे बाद पुनः आ गये और पत्नी से पूछा, "लिख दी तूने चिट्ठी ?” पत्नी के “अभी नहीं” कहने पर फौरन बोल उठे, “अभी लिख मेरे सामने ।” और फिर स्वयँ चिट्ठी वाला लिफाफा लेकर चले गये ।
उधर मैंने और मेरे साथी ने एक पुरानी कार का सौदा कर रखा था कि दोनों उसमें खूब घूमेंगे अवकाश के समय । अगली सोमवार को सौदा पक्का होना था परन्तु न मालूम किस प्रेरणा से कि शनिवार (दफ्तर बन्दी का दिन) होने पर भी मैं अपरान्ह में अपने इन्स्टीट्यूट चला गया काम करने । तभी दूसरे कमरे से दफ्तर का एक आदमी, जो मेरी तरह ही दफ्तर आवश्यक कार्य से आ गया था, मेरे नाम का एक लिफाफा लेकर चला आया कि, “आज शनिवार के कारण डाक वितरण बन्द के बावजूद पता नहीं कौन केवल यही एक लिफाफा मेरी मेज पर छोड़ गया !!"
क्या बाबा जी स्वयँ ही कृपा कर गये ? मुझे तो यही प्रतीत हुआ सभी बिन्दुओं पर विश्लेषण करने पर । जब मैंने आश्चर्य के साथ लिफाफा खोला, पत्र पढ़ा तो उसके अन्दर लिखी बात पर भी आश्चर्य करता रह गया कि जर्मनी में भी मेरे कार्य कलापों पर बाबा जी अपनी दृष्टि गड़ायें हैं !! मैंने तत्काल कार न खरीदने का निर्णय ले लिया । मेरे निर्णय का कारण जानने पर मेरे साथी ने भी कार न खरीदने का फैसला कर लिया। मनन करने पर मुझे यही स्पष्ट हुआ कि चरणाश्रित कहीं भी हो, बाबा जी की आँखें रक्षात्मक भाव लिये सदा उसका पीछा करती रहती हैं ।
-- एस० डी० गण्डा, नई दिल्ली