नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: हनुमान जी को उत्तराखण्ड में स्थापित करने की मंशा बनायी
बजरंगगढ़ उत्तराखण्ड में बाबा जी द्वारा स्थापित प्रथम हनुमान मंदिर है । नैनीताल से डेढ़ कि०मी० दूर स्थित नैनीताल-हल्द्वानी मोटर मार्ग में घाटी नामक स्थान में बजरी के एक ऊँचे पहाड़ी टीले को बाबा जी ने इस मंदिर की स्थापना के लिए चयन कर लिया । पहाड़ इतना कच्चा था कि धँसता रहता था और इसकी तलहटी के इर्द-गिर्द बनी सड़कों के लिए भी सदा ही खतरा बना रहता था विशेषकर वर्षा ऋतु में।
साथ ही पार्श्व में स्थित मनोरा नामक पर्वत श्रेणी में शीतला तथा अन्य रोगों से मृत शिशुओं को दफनाया जाता था । (वहीं पर शीतला देवी का मंदिर भी इसी हेतु बना था।) दिन ढलने के उपरान्त कोई घाटी की तरफ अकेले जाता भी न था भय के कारण, और रात को गली हुई हड्डियों से निकला फास्फोरस अग्नि रूप में इधर उधर उड़कर स्थान की विभीषिका को और भी अधिक भयावह बना देता था ।
एकादश रुद्रावतार बाबा जी महाराज ने हनुमान जी को उत्तराखण्ड में स्थापित करने की मंशा तो बना ली, परन्तु इसके पूर्व इस हेतु जन जन के अंतर में भी हनुमान जी को स्थापित करना भी आवश्यक था । उत्तराखण्ड में तो सदा से ही शैवों और शाक्तों का बाहुल्य रहा है । यद्यपि कुछ वैष्णव भी रहे हैं, परन्तु उनकी आस्था केवल राम और कृष्ण तक ही सीमित रही ।
वैसे भी बहुत संख्या में भी भगवान शिव के मंदिर 1. तथा शक्ति-पीठ ही स्थापित थे । हनुमान जी के मंदिर एक प्रकार से नहीं के बराबर थे । और हनुमान जी को मात्र वानरी सेना का एक नायक एवं राम दूत के रूप में ही देखा जाता था ।
अतएव, प्रथम तो बाबा जी ने घर घर में अखण्ड रामायण का पाल विशेषकर सुन्दरकाण्ड तथा हनुमान चालीसा (जिस की एक एक चौपाई को बाबा जी महामंत्र की संज्ञा देते थे) का पाठ करवाना प्रारम्भ कर दिया- सामूहिक रूप में भी और एकाकी भी।
इस बाह्य क्रिया के साथ साथ उन्होंने अपने संकल्प मात्र से जन जन में हनुमान जी के प्रति निष्ठा, श्रद्धा प्रेम एवं भक्ति का संचार कर दिया । वस्तुतः जनता की बाबा जी के प्रति प्रेम-निष्ठा स्वयं ही हनुमान जी के प्रति निष्ठा-भक्ति का पर्याय बन गई ।
(अनंत कथामृत से साभार)