नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: समाधी के उपरान्त एक दिन महाराज जी खाट के पास आ दे गए स-शरीर दर्शन

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: समाधी के उपरान्त एक दिन महाराज जी खाट के पास आ दे गए स-शरीर दर्शन

बाबा जी ने वर्ष 1973 में अपना पार्थिव शरीर त्याग ही दिया था यद्यपि उसी ११ सितम्बर को अपने आँगन में निर्विकल्प-सी मूक हुई मैं ११/२ बजे रात बाबा जी की स्पष्ट वाणी में “पानी पिला दे, बड़ी जलन हो रही है" सुन चुकी थी, और पुनः 1974 जून में शिला आसन के पास खड़ी यह भी उनकी वाणी में सुन चुकी थी कि ....को .. रुपिये भेजा करो ।” फिर भी मन में यही धारणा पुष्ट थी कि, “जो गया वह पुनः स-शरीर प्रगट नहीं हो सकता है ।"

इस धारणा के विरोधाभास मैं यह भी कई लोगों के बारे में सुन चुकी थी कि उन्हें बाबा जी स-शरीर पुनः दर्शन दे चुके हैं। (जैसे श्री विजय चन्द्र चौधरी और उनकी पत्नी को तथा बिजौन चटर्जी को ।) परन्तु भी मैं अपनी उक्त धारणा में संशोधन करने को तैयार नहीं हुई ।

परन्तु शायद, बाबा जी को मेरी इस धारणा को मिटाने की सूझ गई केवल दया-कृपा वश । उसी 1974 में मैं और मेरे पति गुरु पूर्णिमा के बाद कैंचीधाम से इलाहाबाद लौटते हुए इनके बड़े भाई (श्री पूरनदा) के घर भी हल्द्वानी में रुक लिये । रात गर्मी के कारण हम सभी महिलायें बाहर आँगन में चारपाइयों पर लेटी थीं । कई प्रकार के सोच-विचारों एवं गर्मी के कारण भी नींद ठीक से आ नहीं रही थी ।

तभी मैंने स्पष्ट देखा कि महाराज जी एकाएक सामने प्रगट हो गये और मुस्कुराते हुए मेरी चारपाई की तरफ आने लगे !! मैं न केवल चौंक उठी यह सब देखकर वरन कुछ भयभीत भी हो गई और चिल्ला उठी अपनी जेठानी जी को सम्बोधित करते, “अरे ! आप के यहाँ (घर) तो महाराज जी साक्षात् रहते हैं !!” और तभी महाराज जी लोप हो गये ।

तब से अब मुझे किसी अन्य के भी द्वारा बाबा जी के हुए दर्शनों में न तो आश्चर्य होता है और न कोई शंका । (रमा जोशी)

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