नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : भक्त के घर शादी में उपस्थित होना
मंजू पाण्डे बताती है कि १९८५ में मेरे भाई राजन् की शादी थी । महाराज की मैंने एक भाव भरा पत्र लिखकर शादी का निमंत्रण भेजा । अब बाबा जी ने क्या लीला की मैं आपको बताती हूँ- बारात, वधू के घर विदा होने जा रही थी । जो भी प्रसाद बना मैं थाल सज़ा कर बाबा जी के सक्षम भोग रख आई ।
इतने में पता चला कि मेरे कालेज के प्रेजिडेण्ट आये है - भीड़ के कारण अन्दर आने में संकोच कर रहे है (महिलाओं का जमघट जो लगा था घर मे) सो मैं उनके लिये भोजन की थाली ले सड़क के दूसरी तरफ़ खड़ी उनकी कार की तरफ़ चलने लगी तो देखा कि बहुत ही लम्बे क़द का एक साधु एक सुंदर और अत्यंत महंगा कंबल ओढ़े पास में खड़े हो गये ।
मुझे ख़्याल तक न आया कि वे महाराज जी होगे और मैं थाल लेकर कार की तरफ़ बड़ गयी । परन्तु साधु बाबा बीच में आ गये । उनका कम्बल देखते ही मुझे महाराज जी की याद आ गयी और मैंने उनसे पूछा ," क्या आप भी प्रसाद पायेंगे ?"
उन्होंने एकदम कहाँ," हाँ हाँ क्यूँ नही ।" । तब उन्हें भीतर जाकर महाराजजी को अर्पित भोग दिया । मेरा आग्रह बाबा ने स्वीकार कर लिया ।
जय गुरूदेव
अनंत कथामृत