नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: एक से अनेक...एक स्थान पर दो-दो महाराज जी!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: एक से अनेक...एक स्थान पर दो-दो महाराज जी!

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मैं वृन्दावन आश्रम में महाराज जी की कुटी में उनके सम्मुख बैठा था । मुझसे कुछ दूर पर श्री सिद्धी माँ तथा जीवन्ती माँ भी बैठी थीं । केवल हम तीन ही थे उस वक्त कुटी में । महाराज जी अपनी सरस वाणी में बहुत कुछ सुना रहे थे - कुछ सारगर्भित भी और कुछ हास्यप्रद भी, और इस तरह हमको अपने पर केन्द्रित नहीं होने दे रहे थे ।

साथ में जैसा सदा होता था, वे एक मुद्रा में स्थिर भी तो नहीं हो रहे थे। फिर भी, इस स्थिति में भी, मैंने देखा कि एक महाराज जी के स्थान पर दो महाराज बैठ गये हैं तखत पर !! बाबा जी के इस खेल पर मैं आनन्द से मुस्कुरा उठा । (उधर बाबा जी के दोनों स्वरूप बोलते भी जा रहे थे ।) यह सोचकर कि दोनों माताओं को भी यह दृश्य देखने को मिल रहा है कि नहीं, मैंने उनकी तरफ दृष्टि की तो देखा कि एक की जगह दो सिद्धी माँ बैठी हैं !!

कुछ ही क्षणों में एक दूसरी जीवन्ती माँ उनके बगल में अवतरित हो गईं !! मैं तो यह सब देखकर आत्मविभोर हो उठा । तभी महसूस किया कि कोई मेरी बगल में विराजमान हो गया है । घूमकर देखा तो एक और होतृदत्त बैठा है बगल में !! इस लीला-क्रीड़ा ने मेरे अन्तर्मन में कितना आल्हाद, कितना आनन्द भर दिया होगा, पाठक स्वयँ समझें । (होतृदत्त शर्मा - अलीगढ़ ।)

(त्रेता में श्री राम ने एक से अनेक होकर चित्रकूट में तथा अयोध्या वापिस लौटकर सभी को यथायोग्य सम्मानित किया था. जथा जोग मिले सबहिं कृपाला । द्वापर में श्री कृष्ण ने अनेक बनकर महारास रच दिया और यहाँ तो स्वयं को ही नहीं अपितु अपने परिकरों को भी एक से दो कर दिया महाप्रभु ने !!

-- मुकुन्दा

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