नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: कुम्भ में महाराज जी के अन्न क्षेत्र पर अन्नपूर्णा मैय्या खुलकर नृत्य कर रही थीं

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: कुम्भ में महाराज जी के अन्न क्षेत्र पर अन्नपूर्णा मैय्या खुलकर नृत्य कर रही थीं

वर्ष १९६६ के प्रयाग कुम्भ में गंगा जी के किनारे महाराज जी ने हँसी-विनोद के मध्य ही एक अन्न क्षेत्र स्थापित करवा दिया मीलों बसी कुम्भ नगरी में एक छोटा-सा क्षेत्र, जिसकी पहचान केवल हनुमान-आकृति अंकित एक लाल झंडा मात्र थी (न कि महाराज जी का नाम लिये ।) मेले में अन्य अन्न-क्षेत्र विशाल एरिया में बड़े-बड़े बैनर लिये पंडाल बने थे ।

बहुत ही धीमी शुरूआत हुई हमारे बाबा जी के इस अन्न-क्षेत्र की। परन्तु कुछ ही दिनों में महाराज जी की ऐसी विचित्र लीला चली कि सुबह ८-६ बजे से जो भीड़ बाबा जी महाराज का प्रसाद पाने आती थी, वह देर रात तक बनी ही रहती थी !! हुक्म भी तो था सरकार का कि, “भरपेट खिलाओ और बाँध कर भी दो !!” कहाँ से सब कुछ आता था, पता न चल पाता ।

कभी शुद्ध घी में तरबतर हलवे का भण्डारा तो कभी खीर और कभी आलू-मटर-गोभी मिश्रित खिचड़ी का । दाल-चावल-रोटी तो बनती ही थी । बाबा जी महाराज अक्सर देर रात में आ पहुँचते और धुएँ से भरे रसोईघर में जाते, फिर भण्डार गृह में पहुँच कभी इस बोरे के ऊपर बैठते कभी उसे बोरे के ऊपर “दाल नहीं है ? चीनी नहीं है ? चावल-आटा नहीं है" कहते, और सुबह पता नहीं किस माया के अन्तर्गत दो-तीन ऊँट नजर आते दोनों ओर पीठ पर लदी जींस के साथ !!

पौष मास की पूर्णिमा को प्रारम्भ यह भण्डारा माघ पूर्णिमा तक यथावत चलता रहा । इस पूरे प्रकरण में आद्योपान्त बाबा महाराज की ही मनसा-शक्ति अपना काम कर रही थी जिसके बल पर ही भूमियाधार के ब्रह्मचारी बाबा उत्तराखण्ड की कुछ माइयों के साथ इस एक माह के बृहद भण्डारे हेतु उतनी प्रचुर मात्रा में प्रसाद बना पाये। और जब अन्य अन्न क्षेत्र बसंत पंचमी को बंद हो गये तो उन क्षेत्रों के आश्रित भी महाराज जी के अन्न क्षेत्र पर टूट पड़े !!

परन्तु 'आओ, खाओ और बाँध कर भी ले जाओ' वाले बाबा जी के अन्न क्षेत्र पर जहाँ अन्नपूर्णा मैय्या खुलकर नृत्य कर रही थी बाबा जी महाराज की इस लीला के अन्तर्गत क्या असर पड़ता !! नित्य के भण्डारे खूब चले खुल कर चलें !! जिसके रामधनी, उसके क्या कमी ।"

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