नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: जब बम्बई की एक बच्ची को एक 'बूढ़े, कम्बल ओढ़े व्यक्ति' ने बचाया

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: जब बम्बई की एक बच्ची को एक 'बूढ़े, कम्बल ओढ़े व्यक्ति' ने बचाया

बम्बई में मेरी पड़ोसिन मित्र, श्रीमती तारा झाँवर ने अपनी बेटी का एक विचित्र अनुभव बाबा जी महाराज की चर्चाओं के मध्य सुनाया ।

वर्ष 1977 में एक रात उनकी पुत्री, रुची ने एक स्वप्न देखा था एक मंदिर जैसे स्थान में भयंकर आकार का एक काला जानवर एकाएक उस पर झपटा था । पर तभी बाबा जी ने (स्वप्न में कम्बल ओढ़े एक अधबूढ़े व्यक्ति ने) अपनी ओर खींचकर बचा लिया । (तब रुची ने न तो बाबा जी के बारे में सुना था और न बाबा जी को देखा ही था ।) कुछ काल बाद वह स्वप्न भी भूल गई ।

पाँच वर्ष बाद, 1963 में जब वे माँ-बेटी पर्यटन हेतु नैनीताल गये तो हनुमान गढ़ भी पहुँचे। और वहाँ जब मंदिर तथा बाबा जी के चित्र को रुची ने देखा तो उसे अपना 1977 का स्वप्न याद आ गया वही मंदिर - और वही कम्बल ओढ़े बाबा जी !! तब माँ बेटी बाबा जी के बारे में और भी जानकारी प्राप्त कर कैंचीधाम भी पहुँच गये जहाँ उन्होंने श्री माँ के भी दर्शन किये ।

माँ ने उन्हें महाराज जी का एक फोटो चित्र भी दे दिया । बम्बई लौटकर एक दिन जब रुची भरी बस में दरवाजे के पास खड़ी अपने स्कूल जा रही थी तो गतिशील बस के एकाएक रुक जाने से वह झटके के साथ बस से उछलकर बाहर गिर गई ।

परन्तु उछलकर बाहर गिरने की प्रक्रिया के मध्य, उस विषम अवस्था में भी, उसके नेत्रों के आगे स्वतः ही माँ का दिया हुआ बाबा जी का चित्र कौंध गया और बस से गिरते गिरते उसे लगा कि किसी ने उसे पकड़ कर थाम लिया है !! (किन्तु सड़क पर आते आते वह दहशत के कारण मूर्छित भी हो गई । साधारण उपचार के बाद रुची पुनः सचेत हो गई ।)

गतिशील बस से इस प्रकार सड़क पर एकाएक गिर जाने की अवस्था में चोट लगने अथवा हाथ-पाँव-सिर आदि की हड्डी टूटने की कल्पना की जा सकती है। परन्तु रुची को तो खरोच तक न आई !! बाबा जी ने बीच में ही थाम जो लिया था उसे।

— गीताञ्जलि/बम्बई

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