नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब एक पुलिस अफ़सर ने महाराज जी से कहा की वो उसके घर ना आया करें ...

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब एक पुलिस अफ़सर ने महाराज जी से कहा की वो उसके घर ना आया करें ...

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श्री बिहारी जी के अनन्य भक्त, श्री जमुना प्रसाद त्रिपाठी तब आगरे में डी० आई० जी० सी० आई० डी० थे अंग्रेजी राज में । अपने चरित्र एवं ईमानदारी के लिये प्रख्यात थे । बाबा जी उनके घर भी जाते रहते थे । प्रारम्भ में तो त्रिपाठी जी को उनका आना ठीक ही लगा, पर बाद में उन्हें शंका होने लगी कि कहीं बाबा जी स्वयँ किसी अन्य के जासूस तो नहीं है (मेरा तथा सरकारी तथ्यों का भेद लेने हेतु ?)

शंका धीरे धीरे भय में बदल गई और उन्होंने बाबा जी से साफ साफ शब्दों में कह दिया कि वे उनके घर न आया करें, परन्तु फिर भी बाबा जी मान न मान वाली कर त्रिपाठी जी के घर आते रहे । अन्त में त्रिपाठी जी को उनसे सख्ती से कहना पड़ा आइन्दा आप मेरे घर कदम न रखें। किन्तु बाबा जी पर इस असम्मान का भी कोई असर न पड़ा । (पूर्वकालिक भक्त त्रिपाठी जी का हृदय परिवर्तन जो करना था उन्हें ।) और बाबा जी जब-तब आकर उनके बँगले की चहार दीवारी पर आ बैठते !! अब क्या करते त्रिपाठी जी ?

पर बाबा जी के केवल एक बार ही के कहने पर त्रिपाठी जी ने उस लड़के की अर्जी पर आँख मूँदकर लिख दिया "यह मेरा लड़का है।” लड़के को नौकरी मिल गई और बाबा जी की आज्ञा पालन में किया गया यह अपराध त्रिपाठी जी को छू तक न सका !! (देवकामता दीक्षित ) "जब जानकिनाथ सहाय करें तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो ।”

और तब कालान्तर में जमुना प्रसाद जी स्वतः ही बाबा जी को बिहारी जी का ही साक्षात् स्वरूप मान उनके तन-मन-प्राण से ऐसे भक्त बन गये कि बाबा जी कुछ भी कहें, कुछ भी आज्ञा दें उसका वे आँख मूँदकर पालन कर डालते । इस तथ्य की पराकष्ठा स्वरूप एक दिन एक नौजवान बहुत आर्त होकर बाबा जी के पास एक ऐसी नौकरी दिलवा देने हेतु आ गया जिसके लिये गुप्तचर विभाग के किसी बड़े अफसर की संस्तुति परमावश्यक थी।

बाबा जी उसे सीधे त्रिपाठी जी के पास ले चले और उनसे कहा “तू लिख दे इसकी अर्जी में कि यह मेरा लड़का है ।” त्रिपाठी जी निःसंतान थे भी सर्वविदित था । तब एक ऊँचे ओहदे पर प्रतिष्ठित सरकारी अफसर के यह तथ्य लिये इतनी स्पष्ट झूठ लिखना तो दरकिनार बोलना तक उसी के व्यक्तिगत चरित्र पर कितने बड़े लाँछन का कारण बन जाता और कानूनन भी कितना बड़ा अपराध होता ? कल्पना की जा सकती है ।

पर बाबा जी के केवल एक बार ही के कहने पर त्रिपाठी जी ने उस लड़के की अर्जी पर आँख मूँदकर लिख दिया "यह मेरा लड़का है।” लड़के को नौकरी मिल गई और बाबा जी की आज्ञा पालन में किया गया यह अपराध त्रिपाठी जी को छू तक न सका !! (देवकामता दीक्षित ) "जब जानकिनाथ सहाय करें तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो ।”

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