नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब भक्तों से भरी नाँव में हुआ छेद और सब की जान पर बन आयी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब भक्तों से भरी नाँव में हुआ छेद और सब की जान पर बन आयी

ओंकार सिंह (तब) एस० एस० पी० के पद पर कानपुर में तैनात थे और श्री किशनचन्द्र, आई० सी० एस० वहाँ के कलैक्टर थे । कानपुर में गंगा जी में भीषण बाढ आई हुई थी । दोनों अफसरान अपने मातहतों के साथ एक बड़ी नाव में बैठकर बाढ़ का मुआइना करने निकल पड़े । तभी बीच धार में पहुंचकर पता चला कि नाव में तो छेद हो चुका है और पानी भरने लगा है। सबके प्रयास के बाद भी नाव से पानी उलीचना असंभव हो गया ।

गंगा जी का आर-पार जान पाना असंभव था । मृत्यु निश्चित रूप से सामने आ चुकी थी । तभी ओंकार सिंह चिल्ला उठे, पागलों की तरह - गये महाराज ! और तभी नाव के डूबते डूबते न मालूम कहाँ से एक बहुत बड़े तने वाला, जड सहित तथा अपनी शाखा-प्रशाखा लिए एक पेड़ डूबती नाव से इस तरह आकर लग लिया कि न तो शाखाओं ने नाव को उलटा और न जड़-तने ने नाव को धक्का ही दिया ||

आनन-फानन दोनों अफसर तथा मातहत, नाविक, आदि नाव से कूदकर पेड़ की शाखों को पकड़ते उस पर चढ़ गये और तने पर अपनी अपनी जगह सुनिश्चित कर बैठ गये । देखते देखते नाव पानी में गड़प हो गई ।अब दूसरी आश्चर्य जनक घटना यह हुई कि तेज हवा, ऊँची लहरों एवं जल के भीषण वेग के साथ यह पेड़ कभी उन्नाव की तरफ जाये तो कभी कानपुर की तरफ ।

परन्तु ऊँची लहरों तथा हवा के कारण न तो पेड़ कभी डगमगाया, न करवट ली इसने, और न उलटा । पर धीरे-धीरे पानी के वेग के साथ बड़ी देर बाद एक-डेढ़ किलोमीटर बहकर

कानपुर की तरफ बालू में किनारे पर आकर अटक-सा गया । इसके पूर्व कि प्रवाह इसे पुनः ढकेल ले जाता, सबके सब किनारे पर कूद गये। यह घटना श्री किशन चन्द्र ने, जो बाबा जी महाराज को कतई नहीं मानते थे, स्वयँ मुझे लखनऊ में सुनाई । (केहर सिंह)

(अनंत कथामृत के सम्पादित अंश)

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