नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: इंसान तो इंसान, पेड़ को भी किया जीवित!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: इंसान तो इंसान, पेड़ को भी किया जीवित!

मनुष्य मात्र को तो अपना अस्तित्व बनाये रखने को बाबा जी महाराज का सम्बल मिलता ही था, जड़ वस्तु को भी उनका ऐसा सम्बल मिलते रहना उनकी ईश्वरीय अलौकिकता का ही और भी स्पष्टतर प्रतिबिम्ब है ।

कैंचीधाम में शिला-आसन के पास खड़े अपना अस्तित्व खो चुके अतीस के वृक्ष को पुनर्जीवन प्राप्त करा देने की अद्भुत गाथा पूर्व में वर्णित की जा चुकी है ।

वर्षों पूर्व (१६६०) में बाबा जी अपने कई परिकरों के साथ चित्रकूट यात्रा पर गये थे । उनमें कई माइयाँ भी सम्मिलित थीं श्री सिद्धी माँ एवं जीवन्ती माँ समेत । तब वे वहाँ रामघाट में मिथिली नाम के मल्लाह की नाव में सवार हो मन्दाकिनी के उस पार रामरोशन बाबा के घर मिथिली के साथ गये ।

रामरोशन बाबा ने तब उन्हें मन्दाकिनी के किनारे ही स्थित दतिया धर्मशाला में पहुँचा दिया, और वहाँ महाराज जी को निवास करने हेतु दुमंजिले पर एक ऐसा कमरा दे दिया गया जिसकी फर्शको टेक देने वाली धन्नी-बल्लियाँ पूर्ण रूपेण जीर्ण-शीर्ण हो चुकी थीं तथा किसी समय भी फर्श को लिये-दिये ध्वस्त हो सकती थीं !!

परन्तु बाबा जी तो उसी कमरे में ५ दिनों तक न केवल बने रहे वरन उनके परिकर, विशेष रूप से मातायें भावावेश में उनके सम्मुख एकत्रित हो भजन-कीर्तन भी करती रहीं और भावातिरेक के मध्य उन्मुक्त हो नृत्य भी !! परन्तु फर्श, धन्नी, बल्लियाँ तब भी अपने स्थान पर बने रहे !!

और इसी के मध्य बाबा जी महाराज का नित्य का भण्डारा भी चलता रहा जिसमें काफी संख्या में लोगों ने, (रामरोशन बाबा के परिवार एवं मिथिली के नाविक नाते-रिश्तेदारों समेत) प्रसाद पाया । फर्श अपनी

जगह ही बना रहा । परन्तु जिस दिन महाराज जी ने उस कमरे को छोड़ चित्रकूट से प्रस्थान कर दिया, उसी दिन वह कमरा फर्श, बल्लियाँ धन्नी समेत नीचे बिखर गया !! अब तक कौन रोके था उसे ? टूट कर

वर्ष १६८६ में श्री माँ के साथ (मेरे अपने जीवन में प्रथम बार) चित्रकूट यात्रा में माँ ने हमें रामघाट के उस पार ले जाकर बाबा जी महाराज की उक्त लीला का वर्णन करते वह दतिया धर्मशाला भी दिखाई जो तब बिल्कुल ही जर्जर स्थिति में पहुँच चुकी थी ।

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