नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: वृन्दावन हनुमान मंदिर एवं आश्रम

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: वृन्दावन हनुमान मंदिर एवं आश्रम

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वर्ष १९४४ में प्रथम बार ही श्री माँ ने जब बाबा जी महाराज के नैनीताल में एक भक्त, श्री श्रीराम साह जी के घर में दर्शन किये तभी महाराज जी ने श्री माँ को अपने पास बुलाकर धीरे से कहा था तेरे लिए वृन्दावन में कुटी बनाऊँगा !! ( अपने इस कथन के साथ ही, मानो, महाराज जी ने तभी ही अपनी लीलाओं से सम्बन्धित भविष्य के अनेक घटनाक्रमों में अपने और श्री माँ के एकीकृत महायोग को अनावृत कर दिया !!

इस तथ्य की पुष्टि बाबा महाराज की कथित महासमाधि के उपरान्त के सभी घटनाक्रमों से, जिनका सूक्ष्म वर्णन तृतीय सर्ग में हुआ स्पष्ट रूप से हो जाती है, यद्यपि महासमाधि के पूर्व यह तथ्य गौण ही रहा ।) तब हाल ही में विवाह-सूत्र में बँधी श्री माँ भी बाबा जी की इस रहस्यमयी वाणी को न समझ सकी थीं । परन्तु त्रिकालदर्शी बाबा जी को तो भविष्य के सभी घटनाक्रमों का पूर्ण ज्ञान था ही, और फिर उनका सिद्ध कथन कैसे अकारथ होता ।

अस्तु, पाँचवें दशक मार्ग श्री ठाकुर हनुमान जी का मंदिर एवं आश्रम क्षेत्र अपना वर्तमान स्वरूप लेने लगा, और वृन्दावन में श्री माँ-महाराज जी की (अभी लघु) ही वृन्दावन में परिक्रमा • कुटी ही नहीं वरन एक विशाल क्षेत्र में बाबा नीब करौरी आश्रम एवं श्री •ठाकुर हनुमान मंदिर तथा श्री वृन्दावनेश्वरी के भी मंदिर बन गये । (आठवें दशक में ही श्री माँ-महाराज जी की उक्त लघु कुटी को श्री केहर जहाँ श्री माँ दिनभर के विभिन्न प्रकार के श्रम के उपरान्त कुछ एकान्त में विश्राम ले सकें दिन में भी और रात्रि में भी । इस प्रकार बाबा जी का माँ हेतु कुटी बनाने का उक्त कथन महाराज जी की ही इच्छा शक्ति से साकारता प्राप्त कर गया ।)

परिक्रमा मार्ग में स्थित उस ऊबड़-खाबड़ जनहीन बीहड़ क्षेत्र को, जहाँ केवल करील-गोखरू की झाड़ियों एवं काँटों का साम्राज्य था, तथा जहाँ सूरज ढले जान-माल भी सुरक्षित न रह पाते थे, महाराज जी ने अपनी पावन पद-रज से पवित्र कर सु-भूमि बना डाला । भूमि की स्थिति ऐसी थी कि जब श्री माँ ने प्रथम बार उसे देखा तो सहसा उनके मुँह से निकल गया, “यह कहाँ जमीन ले ली महाराज ? इस सुनसान बीहड़ में कौन आयेगा हनुमान जी के दर्शन करने ?” तब श्री मुख से यही शब्द निकले थे, “देखना, एक दिन यहाँ नगर बस जायेगा ।”

और मनसा- सिद्ध महाराज जी का उक्त कथन आज इतना सार्थक रूप ले चुका है कि आश्रम क्षेत्र के पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, सभी क्षेत्रों में 'मंदिरों, आश्रमों, आवासीय भवनों, धर्मशालाओं की बाढ़ सी आ गई है । कंकरीली-पथरीली धूल भरी सड़क भी पक्की हो गयी मंदिर बनते ही । स्वयँ आश्रम ही इस मिनी-नगर के मध्य में आ चुका है !!

आश्रम के दक्षिण की ओर जो हनुमान मंदिर श्री जैपुरिया द्वारा बनवाया गया, तथा उसमें जो हनुमान-मूर्ति स्थापित है, वह अपने में ही वृन्दावन-धाम का एक अनुपम श्रृंगार बन गई है, जिसकी वस्त्रालंकारों से सुसज्जित अनुपम सुन्दरता देखते बनती है । यह मूर्ति जब प्रतिष्ठापन हेतु वृन्दावन आश्रम पहुँची तो प्रबन्धकों और भक्तों ने इसे खण्डित पाया । बहुत उदासी छा गई आश्रम में कि खण्डित मूर्ति का प्रतिष्ठापन तो हो नहीं सकता, और कि दूसरी मूर्ति न मालूम कब उपलब्ध होगी ।

अन्तर्यामी-त्रिकालदर्शी बाबा जी सारी स्थिति देख रहे थे । तभी तत्काल कानपुर पहुँचकर कुछ परिकरों के साथ रातों रात चलकर वृन्दावन आश्रम पहुँच गये । अनजान बने बाबा जी महाराज ने लोगों से वस्तुस्थिति पूछ-जान कर कहा, “कहाँ खण्डित है मूर्ति । सब झूठ बोलते हैं । दिखाओ हमें ।” और जब क्रेट में मूर्ति को पुनः महाराज जी के सामने खोला गया तो मूर्ति कहीं से भी खण्डित नहीं पाई गई !!

केवल महाराज जी के अलौकिक-दिव्य दृष्टिपात से ही पुनः पूर्ण हो गई !! अब तो उसके प्रतिष्ठापन हेतु कोई व्यवधान बचा न रहा । आज हजारों की संख्या में भक्तगण तथा वृन्दावन-परिक्रमा करते उस मार्ग से गुजरते लोगों को हनुमान करते हैं । जी दर्शन ही नहीं देते, उनकी मनोवांछा की भी पूर्ति

बाबा जी का तत्व-पीठ मंदिर भी आश्रम के ही प्रांगण में बना है जहाँ उनकी मूर्ति का प्रतिष्ठापन वर्ष १६८१ की बसंत पंचमी को सम्पन्न हुआ और जहाँ निष्ठावान भक्त बाबा जी से अन्तर्मन से प्रार्थना कर अपनी मनोकामनायें पूर्ण करवा लेते हैं । इस तत्व-पीठ मंदिर का विवरण तथा धाम में घटी कुछ अलौकिक लीलाओं का वर्णन आगे तृतीय खण्ड प्रस्तुत है ।

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