नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी खेलते थे लुका छिपी, गुल्ली-डंडा और कबड्डी
अपनी (तब की) तरुण अवस्था की मौज में महाराज जी गाँव वालों के साथ गुल्ली-डंडा, कबडडी, लुका-छिपी आदि खेल भी खेल लेते थे । गाँव वालों से अपने को छिपाये रखने का यह भी एक साधन बन जाता था। कबड्डी में बाबा जी से पार पा सकना किसी के वश की बात न रह जाती -- शक्ति में और सॉस रोकने में योगेश्वर बाबा जी का मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता था सब मिलकर एक साथ भी ।
और लुका-छिपी में बाबा जी तो सब को क्षण भर में ढूँढ निकालते पर उन्हें ढूंढ पाना उनके पास ही खड़े रहने पर भी असम्भव हो जाता अदृश्य हुये को कौन ढूँढ पाता ? और तभी वे एकाएक सबके मध्य प्रगट हुए दीख जाते । महाराज जी के योग के ऐसे रहस्य तब भोले-भाले ग्राम वासी क्या समझ पाते ?
इसी प्रकार पेड़ की एक डाल से दूसरी डाल पर अथवा एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उनका पहुँच जाना भी रहस्य ही बना रहा । और आम के मौसम में गाँव वालों से बद कर (शर्त लगाकर) सैकड़ों आम चूस डालना उनका एक नया कौतुक होता । किस योगाग्नि में इतनी संख्या में आम समाहित हो जाते, किसी को खबर न होती ।
-- अनंत कथामृत से साभार