नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: कवन सो काज कठिन जग माहीं ...

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: कवन सो काज कठिन जग माहीं ...

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एक अन्य अवसर पर बाबा महाराज बीरभद्र धाम (ऋषिकेष) भी पहुँच गये एक नये वेष में – सिर में ग्रामीणों की तरह पगड़ी बाँधे, चोला-सा पहिने । तब धाम में आवासीय भवन न थे, और श्री माँ भी टेन्ट में निवास करती थीं । उन दिनों उस धाम में विप्लव-सा मचा रखा था कुछ विरोधी तत्त्वों ने (जिसका वर्णन न करना ही श्रेयस्कर होगा।) केवल माँ को छोड़ अन्य सभी के अन्तर में उहापोह की स्थिति बनी थी तथा श्री जीवन्ती माँ के आदेशानुसार हनुमान जी से प्रार्थना होती रहती थी— पवन तनय बल पवन समाना- बुधि विवेक विज्ञान निधाना । कवन सो काज कठिन जग माहीं जो नहिं होत तात तुम पाहीं ।।

साधू बाबा क्षेत्र के फाटक तक आये और कुछ भ्रमित-सा करते दर्शन वाले शामियाने में माँ के पास आ गये। आते ही ‘हो ! तेरी जय हो' के नाद के साथ माँ के अभिवादन का उत्तर दिया । फिर पुनः भ्रमित करने को बोल उठे “ मैं तो झाड़ीवाले बाबा के पास जा रहा था, यहां - आ गया । ” उन्हें अन्य सेवाओं के साथ जब संतरे का केसर निकाल माँ खिलाने लगी तो बोल उठे “तैने खाया, मैंने खाया ले तू भी खा हो ! तेरी जय हो ।” और बीच में बाबा आप कहाँ से आये का उत्तर होता – “मैं किसी की नहीं सुनता, बस अपनी कहता हूँ हो ! तेरी जय हो । मैं तो झाड़ीवाले बाबा के पास जा रहा था” आदि ।

और जब वे जाने लगे तो माँ के आदेशानुसार श्री झल्डियाल जी के पुत्र, श्री डब्बू उन्हें अपनी कार में बिठा ले चले झाड़ीवाले बाबा के पास। हम सब भी पीछे-पीछे गये । पर जब डब्बू जी कुछ ही दूर उन्हें ले जा पाये तभी एक अन्य कार वहाँ प्रगट हो गई तथा साधू बाबा उसमें बैठकर शीघ्र ही अन्यत्र चले गये !! परन्तु साधू बाबा के इस आगमन के उपरान्त 'कवन सो काज जग माहीं, जो नहिं होहि तात तुम पाहीं ।। ' की प्रार्थना हनुमान जी ने भी सुन ली और बीरभ्रद धाम के निर्माण में उपजी तथा उपजतीं सभी समस्यायें एक के बाद एक सुलझती चली गईं !! और अन्ततः जय भी हो ही गयी !!

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