नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: साधु का धन तो धूनी है!
बद्रीनाथ यात्रा को जाते एक साधू कैंची धाम पहुँचा । महाराज जी के यश की गाथायें सुन वह भी आश्रम चला आया परन्तु वहाँ का वैभव देख वह महाराज जी के प्रति क्षुब्ध हो गया और बोल उठा, “बाबा बनकर संपत्ति संचय करते हो ?”
महाराज जी ने, जो उस समय सिगड़ी की आग सेंकने की लीला कर रहे थे, उसे अपने पास बुलाया और उसके कमर में खोंसे हुए कुछ पुराने नोटों को निकाल कर कहा, “तुमने भी तो धन संचय कर रखा है । जाओ, अग्नि से अपने नोट ले लेना बद्रीनाथ में ।”
और ऐसा कह नोटों को सिगड़ी में डाल दिया शीघ्र ही वे भस्म हो गये। अब तो साधू और भी क्रोधित हो गया । तब महाराज जी ने उससे कहा, “साधू को क्रोध नहीं करना चाहिए। साधू का धन तो धूनी है ।” और पास रखी चिमटी से एक एक कर कई नये नये करेंसी नोट निकाल कर साधू को दे दिये !! साधू चकित होकर इस 'साधू का धन धूनी है लीला' को देखता रह गया और फिर बाबा जी को सच्चे हृदय से नमन करता चला गया ।