नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: लखनऊ की वो आँधी
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नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: लखनऊ की वो आँधी

बहुत अर्से से दर्शन नहीं हुये थे मुझे महाराज जी के, और सूरज को भी बेचैन हो उठे थे हम दोनों । अतः मेरी कार में हम दोनों बाबू चल दिये कानपुर बाबा जी के दर्शनों को परन्तु आलमबाग से कुछ ही आगे पहुँचे थे कि एकाएक बवन्डर-युक्त भीषण आँधी आ गई सामने कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था धूल के कारण ।

कार किनारे कर एक पेड के नीचे खड़ी कर दी गई पर डर लग रहा था कि इस बवंडर में कहीं पेड़ ही न उखड़ जाये । अस्तु राय हुई कि लखनऊ लौट चला जाये आँधी का वेग पीछे से ही पड़ेगा । लौट कर कुछ आगे बढ़े तो आँधी का कहीं नाम भी न था !!

हम सूरज बाबू के घर (ऊपर) पहुँचे ही थे कि दो मिनट के भीतर ही नीचे से आवाज आई, “सूरज !” “अरे ! बाबा जी आ गये कहते हम दोनों नीचे को दौड़े । सीढ़ी के मोड़ वाले चबूतरे पर ही प्रणाम किया ऊपर लाये बाबा जी को । अपनी कथा सुनाई जी हँसते रहे। बाबा

साथ के लोगों से पूछा, “तुम्हें आँधी कहाँ मिली ?” “आँधी ? कैसी आँधी ? हमें तो बराबर साफ मौसम मिला ।” १५-२० मिनट लगातार आँधी हमारे लिये और केवल कुछ ही मिनट पीछे बाबा जी की कार ! और इनको आँधी का पता नहीं ? सोचता रह गया मैं ।

तभी समझ में आया कि अगर आँधी पैदा न करते बाबा जी तो हम लोग तो पहुँच जाते कानपुर और बाबा जी होते लखनऊ में । पता चला कि बाबा जी हँस रहे थे रास्ते में। क्या हमारी दशा पर? (केहर सिंह)

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