नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: वीरापुरम (मद्रास) में स्थल चयन
वर्ष १९७३ (जनवरी) में महाराज जी श्री सिद्धी माँ, श्री जीवन्ती माँ तथा अन्य भक्तों के साथ दक्षिण यात्रा पर थे । मद्रास शहर से कुछ दूर स्थित एक विशिष्ट स्थान, वैष्णवी देवी मंदिर के दर्शन हेतु कुछ कारों में महाराज जी का कारवाँ मद्रास से चला । पूर्व में सदा ही बाबा महाराज की गाड़ी आगे चलती थी, परन्तु इस बार उन्होंने अपनी गाड़ी को पीछे कर लिया !!
(ऐसा क्यों किया उन्होंने ? इस रहस्य का पता ११ वर्ष बाद ही हो पाया !!) गाड़ियाँ आगे बढ़ती गईं। आज पहली बार तो वैष्णवी वीरापुरम मंदिर नहीं गये थे बाबा जी और उनके परिकर। स्पष्ट था कि जान बूझकर ही बाबा जी ने गाड़ियों को आगे बढ़ने दिया। और जब (मद्रास से ३१ किमी० दूर) पहुँच गये तो बाबा जी महाराज एकाएक बोल उठे, “ओहो ! हम तो बहुत आगे चले आये । वापिस चलो ।” साधारण सी बात थी, परन्तु महाराज जी ने गाड़ी से उतर कर एक विशिष्ट स्थल की परिक्रमा-सी कर डाली । गाड़ियाँ वापिस हो गईं । बात आई गई हो गई।
परन्तु इस घटना में निहित तथ्य तब ज्ञात हुआ जब श्री हुकुमचन्द जी ने माँ-महाराज जी द्वारा प्रेरित किये जाने पर उनका एक मंदिर वर्ष १९८३ में वीरापुरम में उसी स्थल में बनवा दिया जिसकी बाबा ने परिक्रमा की थी !! इस मंदिर में महाराज जी की मूर्ति का प्रतिष्ठापन १६ जनवरी, १९८४ को हुआ। तब इस स्थान को देखकर (जहाँ दण्डायुधपाणि श्री कार्तिकेय जी का भी मंदिर है) श्री सिद्धी माँ को ११ वर्ष पूर्व की उक्त घटना याद आ गई कि किस लीला के साथ महाराज जी ने स्वयँ यहाँ आकर अपनी चरणरज से इस स्थल को विभूषित कर दिया था !!
साथ में सितम्बर १४, १९७३ से बाबा जी महाराज के पार्थिव शरीर के मेरे द्वारा संचित फूलों का एक छोटा कलश इलाहाबाद में मेरे पूजा घर में प्रतिष्ठित था। इस शंका से ग्रसित कि हमारे बाद शायद लड़के-बहू इस परम निधि को समुचित आदर न दे सकें, मैंने और मेरी पत्नी ने निर्णय ले लिया था कि हम में से जो भी पहले जायेगा, उसी के साथ यह कलश भी गंगा जी को समर्पित कर दिया जायेगा । किन्तु वर्ष १९८० में श्री माँ को अपने इस निर्णय से अवगत कराने पर उन्होंने कहा कि समय आने पर इसकी समुचित व्यवस्था हो जायेगी ।
परन्तु तब इस समुचित व्यवस्था का कोई खुलासा नहीं किया । और वीरापुरम में मंदिर बनते बनते उनकी आज्ञा हो गई कि कलश लेकर मद्रास पहुँचो । वहाँ यह कलश बाबा जी महाराज की मूर्ति के नीचे स्थापित हो गया !! इस प्रकार वीरापुरम को भी गुरुधाम का स्वरूप देता यह मंदिर भी महाराज जी का एक और तत्वपीठ बन गया !! (मुकुन्दा)