नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: प्रसाद है यह, सबको बाँटो, जो भी मिले तुम्हें...
इसी के विपरीत केवल औपचारिक रूप में लाये गये, अहकार एवं दोषपूर्ण अथवा किसी अवांछनीय कामना लेकर अर्पित भोग प्रसाद (फल, मिठाई अथवा अन्य भोग-सामग्री) को महाराज जी तत्काल एकत्र जन समुदाय में वितरण कर देते या करवा देते, स्वयं स्वीकार नहीं करते थे। घट घट के भावों को जानने वाले बाबा जी ने ऐसे अर्पण को लेकर कई सीखयुक्त लीलायें भी कर डालीं ।
एक महिला (श्रीमती कुशवाहा) बाबा जी द्वारा प्रसाद वितरण के समय महाराज जी के तखत के बिल्कुल पास बैठा करती थीं इस भाव से कि बँटना प्रारम्भ होते ही उन्हें अधिक मात्रा में प्रसाद मिलेगा। अपने ही मुँह से भी उन्होंने अपना यह भाव मुझसे स्वयं भी व्यक्त कर दिया था ।
एक दिन वे एक दोने में चार बड़े गुलाब जामुन लाई और मुझसे निहोरा किया कि, "इन्हें तुम महाराज जी को ही जरूर खिला देना तुम्हारे हाथों से वे अवश्य स्वीकार कर लेंगे ।" उसके इस भाव को महाराज जी पूर्व में ही समझ गये कि “मेरे भक्तों को यह मान्यता नहीं देती।” (बाबा जी तो अपने से अधिक अपने भक्तों की सेवा में अधिक प्रसन्न होते रहे हैं और आज भी होते हैं।)
उसकी इच्छा के मुताबिक मैंने वह गुलाब जामुनों का दोना महाराज जी के हाथ में रख दिया कि श्रीमती कुशवाहा ने अर्पण किया है। महाराज जी ने वह दोना तत्काल सामने बैठे एक भक्त को दे दिया। महिला देखकर बहुत दुःखी हो गई
परन्तु लीला यहीं समाप्त नहीं हुई। बाबा जी ने उस महिला के अबोध बच्चे को पास बुलाया और उससे पूछा, “बेटा, गुलाब जामुन और हैं ?" सरल बुद्धि बालक ने हामी भर दी कि कमरे में और भी हैं। (तब वे कृष्ण-बलराम कुटी के नम्बर एक कमरे में रहती थीं ।) महाराज जी ने वे गुलाब जामुन भी मँगवाकर वितरित कर दिये। और फिर बालक से पुन: पूछा, “और क्या क्या है तुम्हारे कमरे में ?” लड़के ने बता दिया एक एक कर नमकीन, समोसे, मिठाई, फल आदि। और बाबा जी ने भी एक एक कर सब चीजें मँगवा कर बँटवा दीं !! महिला देखती रह गई।
ऐसा कर यही समझा दिया महाराज जी ने कि स्वयं तो अन्य का अर्पित प्रसाद बटोरती हो और अपना प्रसाद मेरे भक्तों को देने में कृपणता करती हो । (ऊषा बहादुर दिल्ली) (प्रसंगवश - एक दिन दादा से मुझे बहुत-सा प्रसाद दिलवाने पर जब मैंने संकोच व्यक्त किया तो महाराज जी ने मुझे भी प्रताड़ना दी थी कि “तू क्यों समझता है कि यह प्रसाद मैंने तेरे लिये या तेरे बच्चों के लिये दिया है ? प्रसाद है यह, सबको बाँटो, जो भी मिले तुम्हें ।” और एक बार जलेबी प्रसाद बाँटते समय कुछ भाग अपने लड़कों के लिये भी बचा लेने पर भी बहुत फटकारा था कि सबको ही अपना लड़का क्यों नहीं समझता ?)