नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अचानक पत्थर उठाने को कहा, नीचे से निकला खर्चा!
बद्रीनाथ यात्रा से लौटते वक्त बाबा जी महाराज अपने परिकरों के साथ, जिनमें श्री सिद्धी माँ तथा श्रीमती मुन्नी साह भी थीं, पांडुकेश्वर में विश्राम हेतु रुके । गिरीश जोशी दल के खजाँची थे । उनके कथनानुसार वे केवल थैली में हाथ डालकर खर्च करते रहते थे । उन्हें हिसाब किताब से कोई मतलब नहीं रहता था, और न यह जानने की जरूरत समझते थे कि अब कितना बचा है ।
कुछ देर बाद बाबा जी ने गिरीश जी से कहा, “अब केवल पाँच रूपये बचे हैं । कैसे चलेगा आगे का खर्चा ?” गिरीश जी ने तब थैले में देखा तो सचमुच केवल पाँच का एक नोट बचा था उसमें !! पर उन्हें क्या चिन्ता ? बाबा जी जाने ।
तभी बाबा जी ने कहा, "जा, एक पत्थर उठा ला ।” पहाड़ों में पत्थरों की क्या कमी, पर महाराज जी की प्रेरणा से उनका हाथ एक ऐसे पत्थर पर जा पड़ा जो आधा जमीन में धँसा था । अपनी जिद में उसे ही गिरीश जी ने बलपूर्वक उखाड़ कर जो हाथ में लिया तो देखा कि निर्मित गढ़े में कई करेंसी नोट पड़े हैं !! वे हर्ष पूर्वक उन्हें बाबा जी के पास ले आये और बाबा जी महाराज भी बाल सुलभ-से हर्ष के साथ बोल उठे, “लो, बन गया काम । भगवान सब इन्तजाम कर देता है ।”
परन्तु तब बाबा जी के रंग में अचेत गिरीश जी महाराज जी की इस सार-गर्भित उक्ति को क्या समझ पाते कि यह भगवान कौन है ?