नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: दंगों के बीच पोस्टमैन लाया पार्सल, भेजने वाले का नाम था...

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: दंगों के बीच पोस्टमैन लाया पार्सल, भेजने वाले का नाम था...

श्री दया नारायण मेहरोत्रा कार्यवश बनारस जा रहे थे तो उनके बड़े भाई सूरज बाबू ने उनके साथ अपने लड़के गोपाल को भी भेज कि यह भी बनारस घूम लेगा । साथ में लल्ला ड्राइवर भी सेवा में गया । वहाँ से सूरज बाबू के मित्र महाराज कुमार विजयानगरम के गेस्ट हाउस में ठहरे जहाँ सभी सांसारिक ठाठ उपलब्ध थे । परन्तु उनके वहाँ पहुँचने के तीसरे दिन ही बनारस शहर दंगे की चपेट में आ गया सारे शहर में कर्फ्यू लग गया। सब कुछ बन्द हो गया । दया नारायण भी अटके रह गये गेस्ट हाउस में ।

और इस बीच न केवल गोपाल को बल्कि लल्ला को भी वाइरल फीवर ने धर दबोचा। दोनों को भीषण ज्वर हो गया । सन्निपात की स्थिति हो उठी । पर दंगों के कारण न तो डाक्टर उपलब्ध थे न दवायें ही और न टेलीफोन हो पा रहा था । डाक व्यवस्था तो स्वतः ही छिन्न-भिन्न थी। असहाय दया बाबू अपने माथे पर मँडराते कलंक से आतंकित हो उठे। क्या करूँ, कैसे करूँ में सारा दिन सारी रात बीत गई।

परन्तु अचानक दूसरे दिन दस्तक पड़ने पर उन्होंने जो दरवाजा खोला तो एक पोस्टमैन को हाथ में एक पार्सल लिये खड़ा पाया । दया बाबू सोचते रह गये कि ऐसी परिस्थिति में इन दंगों के बीच यह पोस्टमैन और यह पार्सल कहाँ से आ गये ? पार्सल लिया तो उसमें भेजने वाले का नाम था 'बाबा नीब करौरी !!'

बड़ी उत्सुकता से उन्होंने जो पार्सल खोला तो उसमें निकला केवल एक फूल बिना कोई संदेश के !! पर इसी को बाबा जी का संदेश समझ दया बाबू ने फूल की कुछ पंखुड़ियाँ लल्ला के सिर पर रख दीं और बाकी फूल गोपाल के तपते सीने पर । हो गया उपचार । शीघ्र ही दोनों का ज्वर लापता !!

दया बाबू सोचते रह गये कि बाबा जी महाराज को कैसे पता चला मेरी दशा का ? इस कर्फ्यू के बीच कौन लाया यह पार्सल ? दो दिन ही भीतर यह सब कैसे संभव हो गया ? (केहर सिंह)

(हमारे पास भी यही प्रश्न हैं, पर सबका उत्तर एक ही है “बाबाजी महाराज । " - लेखक)

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