नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: पूरियाँ बनती रही...न तो अतिरिक्त आटा गूंधा गया और न ही कोई सब्जी बनी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: पूरियाँ बनती रही...न तो अतिरिक्त आटा गूंधा गया और न ही कोई सब्जी बनी

मेरे घर तो गुप्त रूप से खेल हो गया । परन्तु केहर सिंह जी के यहाँ तो स्पष्ट ही कर दिया सब कुछ । उन्हीं से बाबा जी को बड़े आग्रह से मैंने अपने यहाँ प्रसाद पाने के लिये बुलाया । बाबा जी कल आने को राजी भी हो गये। मैंने घर आकर व्यवस्था की महाराज जी तथा उनके साथ के पंडित के लिए पूरी सब्जी तथा अन्य साथ आने वाले संभावित भक्तों के लिये फल-मिठाई ।

दूसरे दिन बाबा जी आ भी गये. साथ मे लिये सदा की भाँति भक्तों को दो थालों के लायक पूरी हेतु आटा गंधा था और उसी अनुपात से सब्जी बनी थी। मेरी श्रीमती जी एक छोटी सी कढ़ाई में (जिसमे एक बार में केवल एक पूरी उत्तर सकती थी) एक एक कर पूरी उतारने को तत्पर हुई ।

नई मुरादाबादी कलई के सेट में से एक थाली, कटोरियाँ और गिलास निकालकर महाराज जी के लिये प्रसाद राजा कर मैं उनके सामने ले आया। उसने एक ही ताजी पूरी थी महाराज जी धीरे-धीरे उसे पाने लगे । मैं दूसरी पूरी लेने लपका तो मेरे अहं को बढ़ाने के लिये महाराज जी बोले, “देखो कैसे दौड़ कर जा रहा है मेरे लिये पूरी लाने पर तुरन्त ही दूसरी पूरी के आने पर उसी अहं पर चोट पढ़ गई। भक्तों की तरफ इशारा कर बोले, "इनको नहीं खिलायेगा ? फिर बुलाया क्यों था ? इनको भी खिला " (बाबा जी सदा ही अपने से अधिक अपने भक्तों के प्रति आदर भाव की और सचेत रहा करते थे ।)

अरे बाप रे । कहाँ से खिलाऊं इन्हें ? आटा-सब्जी तो सिर्फ दो ही के लिये तैयार है। पत्नी से कहा तो, एक तो वे वैसे ही उदासीन थी महाराज जी के प्रति ऊपर से इस तत्काल की आज्ञा का पालन उनसे संभव ही न था । सो वे रुष्ट हो कर चली गई दूसरे कमरे में कि, “अब खुद ही संभालो " घर में आई उनकी एक रिश्तेदार महिला ने भी किनारा कस लिया ।

अब तो मैं किंकर्तव्यविमूढ हो गया। तभी मेरा एक चपरासी बोल उठा, "सरकार आप बाबा जी को खिलायें । मैं बनाता हूँ कुछ आश्वस्त हो में बाबा जी के लिये पूरियाँ ले जाने लगा सोचा पहले बाबा जी खा लें फिर अन्य लोगों के लिये पूरी सब्जी हेतु तैयारी की जायेगी । मैंने साथ साथ सात-आठ थाली-कटोरी के सेट भी निकाल लिये।

और फिर जो कुछ हुआ वह केवल बेहोशी के आलम मे || पूरियाँ बनती रही, महाराज जी, पंडित और अन्य भक्त पाते रहे न तो अतिरिक्त आटा गूंधा गया और न ही कोई सब्जी बनी। सभी तृप्त हो गये उसी तैयार मात्रा के आटे-सब्जी में !! फिर मिठाई-रसगुल्ले बँटे । सबने पाये।

और जब बाबा जी चले गये तो उसी पूरी सब्जी में चपरासी भी तुष्ट हुआ और ड्राइवर भी !! रसगुल्ले का पात्र भी भरा ही मिला !! बाकी परिवार और मैंने भी रोज की तरह अपनी खिचड़ी की जगह पूरी-सब्जी ही पाई !! दो की जगह १६ व्यक्ति उसी आटे-सब्जी में तृप्त हो गये !!

अपना कौतुक कर महाराज जी चल दिये अपने चरणाश्रित की लाज बचा कर । (केहर सिंह)

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