नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: माई मुझे याद कर रही थी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: माई मुझे याद कर रही थी

24 सितम्बर 1964 का दिन था । यह ओईसीडी की रिपोर्ट प्रोफेसर साहब के पास अगस्त माह में आई थी। प्रोफेसर साहब का सदैव का सिद्धान्त रहा है कि जो भी पुस्तक या पत्रिका उनके सामने आती है, उसका पूर्ण अध्ययन करने के पश्चात् ही मेज से हटाकर अलमारी में रखते हैं। यह उनका स्वभावगत गुण बन गया है। उस समय इतना सम्भव नहीं था कि हम चौबीस घंटे का नौकर रख पाते, तो झाड़ पोंछ तथा अन्य कार्य आदि करता। परिवार के लिए मेरी सास प्रातः का खाना बनाती तथा रात का खाना मौसी बनाती थीं।

घर में प्रोफेसर साहब के छोटे भाई तथा बहिन का लड़का रहता था। मैं ऊपर का सब कार्य सफाई, झाड़-पोंछ नाश्ता बनाना, आये लोगों की खातिरदारी आदि करती थी। झाडू लग जाने के पश्चात् पूरा डेढ़ घंटा इन्हीं कार्यों में लगता था।

मेरी सास तथा मौसी सास को ज्वर हो गया था और मुझे भी अपने सरकारी पद का भार निवाहने के लिए ठीक 10 बजे प्रातः ट्रेनिंग कालेज चले जाना पड़ता था। ऐसी परिस्थिति में हम लोगों ने अपने यहाँ एक नेपालिन रख ली थी। जो समय पर आकर खाना बनाकर चली जाती थी। उसकी मदद से मैं निश्चिन्त होकर अपने कार्य पर चली जाती थी।

जब मैं कुर्सी तथा पुस्तकों के झाड़ने के पश्चात् मैगजीन झाड़ने लगी तो जैसे ही पन्ना पलटा तो मुझे कवर पेज पर टेढ़े-मेढे अक्षर लिखे दिखे। जब गौर से देखा तो देखकर स्तब्ध रह गयी। यह केवल टेढ़े मेढ़े अक्षर ही नहीं थे वरन् महाराज जी के हाथ की लिखाई में 'राम, राम, राम'। इन्हीं अक्षरों में कवर पेज के पीछे के पन्ने पर लिखा था। मेरे विस्मय की सीमा नहीं रही। मैंने कौतूहलवश आखिरी पन्ना भी पलटा, उसमें भी ऊपर से नीचे और दायें से बायें 'राम, राम, राम' गहरी नीली स्याही से लिख गया है। यह देखकर रोमांचित हो गयी और चारों ओर देखने लगी।

माँ, माशीमाँ की अस्वस्थता के कारण मैं काफी चिंतित रहती थी। एक दिन चाय पीने के उपरांत प्रातः प्रोफेसर साहब के स्टडी रूम में गयी और एक पुस्तक झाड़कर रखने लगी, जिससे प्रोफेसर साहब स्नान कर अपनी पुस्तक या मैगजीन का अध्ययन कर सकें। अन्य स्त्रियों की तरह पति के सामने झाडू लगाना या झाड़ पोंछ करना मुझे सदैव से नापसंद रहा, सो यह कार्य मैं प्रातः ही उनके उठने से पहले किया करती।

जब मैं कुर्सी तथा पुस्तकों के झाड़ने के पश्चात् मैगजीन झाड़ने लगी तो जैसे ही पन्ना पलटा तो मुझे कवर पेज पर टेढ़े-मेढे अक्षर लिखे दिखे। जब गौर से देखा तो देखकर स्तब्ध रह गयी। यह केवल टेढ़े मेढ़े अक्षर ही नहीं थे वरन् महाराज जी के हाथ की लिखाई में 'राम, राम, राम'। इन्हीं अक्षरों में कवर पेज के पीछे के पन्ने पर लिखा था। मेरे विस्मय की सीमा नहीं रही। मैंने कौतूहलवश आखिरी पन्ना भी पलटा, उसमें भी ऊपर से नीचे और दायें से बायें 'राम, राम, राम' गहरी नीली स्याही से लिख गया है। यह देखकर रोमांचित हो गयी और चारों ओर देखने लगी।

प्रोफेसर साहब स्नान कर ही चुके थे। उन्होंने आकर देखा तो कहा 'कितना आश्चर्य है'। अभी मैं देखकर गया था कुछ भी नहीं लिखा था। मालूम पड़ता है अभी अभी लिखा है। फिर घर के अपने कार्यों में कभी-कभी बड़ी उलझन पैदा होती और मन अशांत हो जाता तो महाराज की तस्वीर के सामने सब समस्याएँ रखती और कहती आप ही ठीक करिए।

जटिल से जटिल परिस्थिति आने पर भी उनकी कृपा से सब समस्या का समाधान मिल जाता है। समस्याएँ दूर हो जाती और चंचल मन शांत हो जाता है और मुझे पुनः सब कार्य के समाधान लिए भगवान पर छोड़ने के लिए प्रेरित करते । इस प्रकार 'राम, राम, राम' लिखकर अपनी उपस्थिति का आभास कराया और ऐसी शांति दी जिससे दुगुने उत्साह से कार्य कर सकूँ।

अनायास महाराज जी जब आये तो उनसे मैगजीन में 'राम, राम, राम' अपनी शैली में अंकित करने की चर्चा की गयी। सहज भाव में बाबा जी कहने लगे – 'माई मुझे बहुत याद कर रही थी।'

!! राम !!

- कमला मुखर्जी 'दीदी', 4 चर्च लेन, इलाहाबाद

Related Stories

No stories found.
logo
The News Agency
www.thenewsagency.in