नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मैनपुरी का कलेक्टर तुलसीपत और उसका गुरु प्रेम!
गुरु-निष्ठा की एक और अभूतपूर्व गाथा श्री केहर सिंह जी ने सुनाई । श्री तुलसीपत राम अंग्रेजों के समय मैनपुरी के कलेक्टर थे, बड़े गुरु-निष्ठ । तब उनके गुरु उन्ही के निवास स्थान पर रह रहे थे सभी प्रकार से उनकी सेवा हो रही थी । परन्तु एक दिन किसी नौकर द्वारा उनका अपमान-सा हो गया ।
गुरु जी को चेले की परीक्षा का अवसर मिल गया और लाठी लेकर सीधे कलेक्टर साहब की अदालत पहुँच तुलसीपत जी पर प्रहार करने लगे । तुलसीपत जी तुरन्त उनके चरणों में (कोर्ट में ही) गिर गये उनका हाथ सहलाते बोल उठे: "प्रभू हाथों को कष्ट तो नहीं हुआ ?" गुरु का आचरण देख कोर्ट में खड़े सिपाही गुरु जी को पकड़ने दौड़ पड़े तो तुलसीपत जी ने उन्हें खबरदार कहकर रोक दिया ।
आदरपूर्वक पुनः घर ले आये । मामला कमिश्नर तक गया और उसने आज्ञा दे दी कि गुरु जी को पकड़कर उन पर कोर्ट की मान-हानि का मुकदमा चलाया जाये । इस पर तुलसीपत जी ने कह दिया, मेरा इस्तीफा ले लो, पर मैं गुरु जी पर मुकद्दमा नहीं चलाऊँगा ।" गर्वनर तक बात पहुँची । उसने भी मुकद्दमे की आज्ञा दे दी पर तुलसीपत जी अपनी बात पर अड़े रहे । अन्ततोगत्वा सभी को चुप रहना पड़ गया ।