नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी का अदृश्य हो जाना
बाबा जी महाराज स्वयं तो अदृश्य हो ही जाते थे, परन्तु साथ में अपने परिकरों को भी अदृश्य कर देने की भी अलौकिकता उनमें सहज-रूप में विद्यमान थी । हल्द्वानी में लटूरी बाबा के आश्रम में महाराज जी विराजे थे । स्वाभाविक था कि भक्तों की भीड़ वहीं एकत्रित हो गई । कुछ देर तक वहाँ अपनी लीलाएँ करते रहे बाबा जी, फिर एकाएक उठकर जाने को उद्यत हो गये ।
भक्तों की भीड़ भी उन्हीं के साथ जाने को तत्पर हो गई जो बाबा जी नहीं चाहते थे। सो उन्होंने सबसे कहा, “तुम सब लोग यहीं रुको । हम हाल एक भक्त के घर होकर आते हैं ।” और तब मुझे साथ लेकर एक रिक्शे में बैठकर हल्द्वानी से उल्टी दिशा को चल दिये । भक्तगण इसी इन्तजार में वहीं रुक गये कि बाबा जी अभी लौटती बेर इसी मार्ग से तो निकलेंगे ।
और उधर महाराज जी रिक्शे में कुछ दूर जाकर पुनः लौट पड़े हल्द्वानी की ओर। लटूरी बाबा के आश्रम के आगे खड़ी भीड़ को देखकर हँसे भी पर लोगों ने न तो बाबा जी को देखा, न मुझे. बस खड़े ही रह गये !! अपने को ही नहीं, रिक्शा समेत मुझे भी अदृश्य कर दिया !!
- पूरनदा