नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: बाबा जी महाराज एक जघन्य अपराध के भागी होने के कारण बरेली जेल में बन्द हैं !!
क्ले-स्क्वायर (लखनऊ) के श्री जमुना दत्त पाण्डेय जी बाबा जी महाराज के निष्ठावान भक्तों में से थे । स्वभाव के सरल पाण्डे जी को एक दिन सन्ध्या समय अपने समकक्षी-हम उम्र वृद्ध जनों के साथ टहलते हुए एक अफवाह सुनने को मिली कि बाबा जी महाराज एक जघन्य (?) अपराध के भागी होने के कारण बरेली जेल में बन्द हैं !! अपने एक विश्वसनीय साथी के मुँह से यह सब सुनकर आप अत्यन्त विकल, विक्षुब्ध मानसिक अवस्था में घर पहुँचे ।
बार-बार इस घटना का स्मरण हो आने से चित्त में उत्पन्न बेचैनी के कारण आप न तो ठीक ढंग से सन्ध्याकालीन पूजा-अर्चना ही कर पाये और न सुचित्त हो भोजन-प्रसाद ही पा सके । कारण पूछे जाने पर अपनी अस्वस्थता बता दी, परन्तु घर में किसी से भी असली रहस्य नहीं बताया कि आज उन्होंने अपने परम पूज्य इष्ट-सम बाबा जी के लिए कैसी अनहोनी सुनी है।
रात को भी बिस्तरे पर करवटें बदलते रहे, हृदय में इस अत्यन्त गहन-गंभीर चोट के कारण । जहाँ एक ओर इस अनहोनी पर सहसा विश्वास न ला पा रहे थे (बाबा जी के प्रति निष्ठा-भक्ति के कारण) वहीं अपने विश्वसनीय मित्र द्वारा सुनाई गई इस घटना ने मानो इनके बुद्धि-विवेक को झकझोर कर रख दिया था।
पहले इसी हेतु पुनः जाप करने लगे, पर चित्त न जमा तो गजेन्द्र मोक्ष स्तुति लेकर बैठ गये। सुबह ब्राह्मबेला तक न मालूम कितने पाठ कर डाले गजेन्द्र मोक्ष के । बाबा जी के न आने पर हताशा भी घेरे जा रही थी। परन्तु तभी भोर होने के लगभग दरवाजे पर दस्तक पड़ी बाबा जी की आवाज के साथ “जम्ना, जम्ना !!” (पूर्व जब भी आते थे तो इनकी बहू, शान्ता का नाम लेकर पुकारते थे, और इस बार जम्ना !!) उछलकर दरवाजा खोल बाहर आये।
तब तक दूसरे दरवाजे से निकलकर परिवार के कुछ सदस्य प्रणाम कर चुके थे । बाबा जी को देख, सदा गम्भीर रहने वाले पाण्डे जी विफर कर बाबा जी के चरणों में ऐसे लोट गये जैसा पूर्व में कभी नहीं किया। अपने भावपूर्ण अश्रुओं से महाराज जी के चरण भिगो दिये, और महाराज जी के बार बार उठ-उठ कहने पर भी २-३ मिनट ऐसे ही पड़े रहे चरणों में । गजेन्द्र को मृत्यु-सम महान आपदा से मुक्ति जो मिल गई थी !!
और तभी साथ में आये श्री उमा दत्त शुक्ला बोले कि महाराज जी तो कानपुर जा रहे थे। नवाबगंज पहुँचते पहुँचते कहने लगे कि, “गाड़ी लौटाओ । चलो तुम्हें जम्ना के घर शान्ता के भजन सुनवायेंगे ।” अपने भक्त की आस्था-निष्ठा-विश्वास पर चोट न सह सके महाप्रभु । अपने इस गजेन्द्र की पुकार सुनकर उसे व्यथा से मुक्ति दिलाने दौड़ पड़े अन्य रूप का बहाना लेकर ।
और फिर अधिक न रुके वहाँ भजन भी नहीं सुने शान्ता जी के। चाय पी-पिलाकर पुनः चल दिये कानपुर को । केवल बाद में ही पाण्डे जी ने प्रभु की इस दया में निहित तथ्य का रहस्योद्घाटन किया अपने परिवारी जनों से ।