नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मैं काऊ को चेला नाऊं, तोय कैसे बनाय लेऊं!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मैं काऊ को चेला नाऊं, तोय कैसे बनाय लेऊं!

कहा जाता है कि हनुमान जी ने सूर्यदेव से बाल-हठ कर अपनी बाल्यावस्था में ही समस्त विद्यायें आत्मसात कर ली थीं। युग पुरुष एकादशरुद्रावतार बाबा जी महाराज ने स्वयं भी ज्ञानिनामग्रगण्यम् बन जाने में ऐसी विद्यायें, ऐसी विधायें कहाँ से, कैसे प्राप्त कीं, पता नहीं ।

'मैंई काऊ कौ चेला नाऊं, तोय कैसे बनाय लेऊं कहा था उन्होंने एक भक्त के चेला बना लिये जाने के आग्रह में । परन्तु साथ में पूरनदा से स्वयं बोले थे, “पूरन, सत्रह वर्ष की उम्र में (ही) हमें कुछ करने को बाकी नहीं रह गया था ।” (त्रिगुणात्मक तत्वों से संभूत काया का परिष्करण हो चुका था ।)

उत्तर से दक्षिण एवं सुदूर पूर्व (हमारे ज्ञान में कम्बोडिया तक) से पश्चिम तक तथा विदेशों में भी भ्रमण करने वाले बाबा जी न मालूम कितनी कितनी भाषाओं तथा स्थानीय भाषा में बोलचाल वाले भक्तों-दीनों के साथ लीलाएं करते रहे जिसमें सभी की अपनी अपनी भाषा में कही बातें समझ तथा उन्हें अपनी समझाकर तुष्ट करते रहे होंगे, और साथ में न मालूम कौन कौन वेष धारण करते होंगे इस हेतु ।

बजरंगगढ़ (नैनीताल) में दो जर्मन जिज्ञासुओं को भी, अकेले ही बिना किसी दुभाषिये की सहायता के, उनकी जिज्ञासाओं की तुष्टि कर विदा कर दिया ।के० के० साह (नैनीताल) के घर शुद्ध उच्चारण के साथ अंग्रेजी में लिखी पुस्तक स-स्वर बाँचते पकड़ गये थे बाबा जी भगवती प्रसाद पाण्डे जी द्वारा ।

और, महासमाधि के बाद भी केनेडियन महिला, जिल मार्कस से भी कैंची में अंग्रेजी में कहा था, “माई चाइल्ड, यू हैव नॉट ईटन ऐनी थिंग सिन्स मॉर्निंग । नाउ गो एण्ड ईट ।” (मेरी बच्ची, तुमने सुबह कुछ नहीं खाया है । अब जाओ, कुछ खा लो ।) जिल मार्कस अपनी जिद में सुबह से ही रामकुटी में बिना चाय तक पिये बैठ गई थी कि माँ ने कहा था उससे दो दिन पूर्व "बाबा जी अवश्य दर्शन देंगे तुम्हें ।” और बाबा जी ने प्रगट हो उसके कँधे पर हाथ रखते उक्त बात कही थी ।

अपना यह अनुभव जिल ने केहर सिंह जी तथा श्री माँ को बताया । इसी प्रकार सुनन्दा मार्कस को भी ग्वाटेमाला के जंगल में अंगेजी में सावधान किया था (चेक द फ्यूज़ फ्यूज़ चेक करो) कहकर ।

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