नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ:  श्री माँ के माध्यम से अपने बिखरे-बिछुड़े भक्तों को पुनः भक्ति-मंच पर लाकर बिठा दिया

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: श्री माँ के माध्यम से अपने बिखरे-बिछुड़े भक्तों को पुनः भक्ति-मंच पर लाकर बिठा दिया

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श्री माँ की यही एक-निष्ठ सेवायें बाबा जी द्वारा स्थापित सभी अन्य मंदिरों-आश्रमों (तथा भक्तों द्वारा बाबा जी की महासमाधि के बाद स्थापित मंदिरों) के प्रति भी समर्पित होती रहीं । वृन्दावन तो वे बाबा महाराज के साथ ही जाती रहती थीं आश्रम बनने के पूर्व से ही। फिर वर्ष १९७३-७४ से हर वर्ष दो-तीन बार वहाँ आश्रम-वास हेतु भी वे जाने लगीं और ऐसे प्रवास के मध्य सक्रिय ट्रस्टी की भूमिका निभाती रहीं वहाँ की व्यवस्था एवं संचालन में ।

परन्तु नीब करौरी जाना उन्होंने दिसम्बर १९७४ से ही प्रारम्भ किया। (नीब करौरी धाम में माँ के क्रिया कलापों का संक्षिप्त विवरण द्वितीय खण्ड की द्वितीय पुष्पाञ्जलि के ‘नीब करौरी तीर्थ का पुनर्जागरण' एवं 'गुफा का पुनर्दर्शन' प्रसंगों में किया जा चुका है और बाबा जी के मनसा-संकल्पों की पूर्ति हेतु ऐसे अन्य क्रिया कलापों का वर्णन इस खण्ड की तृतीय एवं चतुर्थ भावाञ्जलियों में सम्मिलित बद्रीनाथ, पौड़ी, हनुमान चट्टी, ऋषीकेश (वीरभद्र) प्रकरणों में दिया गया है । ) आदि

साथ में भक्तों द्वारा धारचूला, कोटमन्या, वीरापुरम, पिथौरागढ़ आदि में स्थापित मंदिरों में तथा बाबा जी महाराज द्वारा शिमला, दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, आदि स्थानों में स्थापित मंदिरों में भी यदा-कदा पहुँच और वहाँ बाबा जी महाराज के भक्तों-आश्रितों को एकत्रित कर एंव प्रेरित कर इन मंदिरों के विकास में भी नई ज्योति जागृत करती रहीं ।

श्री माँ के इन सब क्रिया कलापों के फलस्वरूप, एवं उनके द्वारा प्रेरित पुराने निष्ठ भक्तों के सहयोग से बाबा जी का बिखरा-सा भक्त समाज पुनः जागृत हो एक दूसरे के सम्पर्क में आकर फिर से एकजुट उठा। और इस प्रकार बाबा महाराज ने श्री माँ के माध्यम से नीब करौरी, वृन्दावन, कैची, उत्तराखण्ड, बरेली, आगरा, अलीगढ़, मथुरा, दिल्ली, हो कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, ऐटा, फतेहगढ़-फर्रुखाबाद, मैनपुरी, मद्रास आदि स्थानों तथा विभिन्न जिलों एवं प्रान्तों के अपने बिखरे-बिछुड़े भक्तों को पुनः अपने भक्ति-मंच पर लाकर बिठा दिया ।

श्री माँ के इन क्रिया कलापों के फलस्वरूप जाने-पहिचाने-पुराने पुनः आये ही बाबा जी की प्रेम-डोर से बँधे साथ में अनगिनत भक्त तो नये-अनजाने भी नीब करौरी, वृन्दावन तथा कैंचीधाम की प्रताप गाथाऐं जान-सुनकर, इन तीर्थों के दर्शन प्राप्त कर बाबा जी महाराज के इस प्रेम सूत्र में गुँथे-पिरोये अंसख्य मोती बन चुके हैं बनते जा रहे हैं !! -महाप्रयाण के बाद की ये लीला-गाथायें अनिर्वचनीय हैं ।

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