नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ:  अकाल मृत्यु से रक्षा एवं महा मृत्यु के प्रति साधारणतः उदासीन

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अकाल मृत्यु से रक्षा एवं महा मृत्यु के प्रति साधारणतः उदासीन

हमारी प्रार्थनाओं में अधिकतर अकाल मृत्यु से रक्षा की कामना की गई है। यथा,

१) अकाल मृत्यु हरणं, सर्वव्याधि विनाशनम् ।

२) अकाल मृत्योपरिणक्षणार्थम् । वन्दे महाकाल महासुरेशं ।।

३) अनायासे न मरणं बिना दैन्ये न जीवनम् ।

देहि में कृपया शंभो, तव भक्ति अचंचला ।।

परन्तु साथ में संहारकर्ता महारुद्र से चिर आयुष्य के लिये भी

प्रार्थना की गई है

मानो महान्तमुत मानो

मानस्तो के तनये मान आयुषिमानो गोषुमानो अश्वेषुरीरिषः मानोवीरान् रुद्र भामिनो व्वधीहविष्मन्तः सद मित्वा हवामहे ।

(हमें अपना ही बालक समझ चिर आयुष्य प्रदान करो आदि) और भी कि त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् आदि)

जैसा कि उनकी ऐसी विभिन्न लीलाओं से स्पष्ट है रुद्रावतार महाराज जी अनेकों की अकाल मृत्यु से (एवं तथाकथित अकाल मृत्यु से भी) उक्त लीलाओं के माध्यम से रक्षा करते रहे हैं । यद्यपि महाकाल के मार्ग में वे साधारणतः अवरोध उत्पन्न नहीं करते थे जीवनदान लीला कर परन्तु ऐसी अनेक रक्षा-लीलाओं के विभिन्न पहलुओं पर गहनता से मनन करने पर यह निर्णय लेना कठिन हो जाता है कि उन्होंने कहाँ अकाल मृत्यु से रक्षा की और किन मामलों में महामृत्यु से – फिर भी, विरोधाभास रूप, किन्हीं अन्य विशिष्ट अवस्थाओं में उन्होंने अपने ही अनन्य भक्तों को शान्ति से जाने दिया । (बिड़ला कालेज के प्राचार्य श्री संघ, श्री तुलाराम साह जी, हब्बा जी, इंजीनियर माई के पति आदि जिनमें प्रमुख हैं ।

और पुनः समुचित उपचार के अभाव में तीसरी स्टेज का टी० बी० तथा कैंसर जैसे महाकाल-रूप रोगों से मुक्ति सच्चे अर्थ में तो स्वतः महामृत्यु से रक्षा है - इसमें कोई सन्देह नहीं - ये ही जीवन-दान के पुष्ट दृष्टान्त हैं ।

महाराज जी ने इस सम्बन्ध में व्याप्त भ्रम का निवारण, लगता है, स्वयँ ही अपनी दो (ज्ञात) लीलाओं के माध्यम से कर दिया (यद्यपि ये घटनायें उनकी तथाकथित महासमाधि के उपरान्त की ही है) - यथा,

श्री आर० के० जोशी (रब्बू) की पत्नी रेखा का वर्ष १६७५ में मेरठ में एक मेजर आपरेशन हुआ था । आपरेशन टेबुल पर पड़ी मृत-प्राय रेखा को अपनी अर्धचेतना में प्रतीत हुआ कि वह अन्तरिक्ष की ओर उड़ी जा रही है।

इस यात्रा में उसने एक के बाद एक, कुछ कुछ अन्तराल से तीन चार धमाके सुने और तब एक अन्ध-क्षेत्र में पहुँच गई तभी उसने महाराज जी की-सी आवाज में सुना, "इसे क्यों लाये ? वापिस ले जाओ इसे !!" और फिर कुछ देर बाद उसके मृत-प्राय शरीर में पुनः स्पन्दन होने लगा!!

डाक्टरों ने पसीना पोंछ मुक्ति की साँस ली । पूर्ण चेतना आने पर रेखा ने अपना यह विचित्र अनुभव हम सबको स्पष्ट शब्द-चित्रण द्वारा बिना किसी प्रकार से भ्रमित हुए सुनाया, और श्री माँ के कुछ ही दिनों बाद मेरठ आगमन पर उन्हें भी सुनाया ।

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