नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब एक देश भक्त के प्राण बचाने एकाएक ऋषिकेश पहुँचे महाराज जी
बाबा जी महाराज ऋषिकेष के एक धर्मशाला के कमरे में एकाएक पहुँच गये और वहाँ उपस्थित एक व्यक्ति से बोले, "अरे ! तुझे तो बड़ी भूख लगी है । कई दिन से तुझे खाना नहीं मिला है । चल मेरे साथ ।” और दूसरे कमरे में उसे ले जाकर गरमागरम भोजन से पूर्ण एक थाली के पास बिठा दिया !! उस भूखे व्यक्ति ने भरपेट प्रसाद पाया ।
बाबा जी देखते रहे, और जब वह निबट गया तो परम अनुगृहीत होकर उसने महाराज जी के चरण चाँपने प्रारम्भ कर दिये । तभी बाबा जी ने उससे कहा, “पुलिस तेरा पीछा कर रही है । जा, यहाँ से भाग जा । पहाड़ों (हिमालय) से होते तिब्बत की ओर निकल जाना ।”
(बाबा जी को कहाँ से पता मिला कि अमुक धर्मशाला में एक भूखा देश-भक्त बैठा है, और कहाँ से उन्होंने दूसरे कमरे में उसके लिये गरम भोजन की थाली प्रस्तुत कर दी ?)
एक देश-भक्त को उबारने हेतु ही बाबा जी वहाँ पहुँच गये थे और वहाँ उनके लिये भोजन की थाली सृजित कर उन्हें तृप्त भी कर दिया और सुरक्षित भी । बीस वर्ष बाद, सन् १६६२ में श्री शिवनारायण टंडन जी के घर उनके भतीजे के उपचार हेतु कानपुर आने पर उन्होंने अपनी गाथा स्वयँ टंडन जी को सुनाई थी और मालूम होने पर कि बाबा जी इस वक्त लखनऊ में विराजमान हैं, उन्होंने लखनऊ जाकर बाबा जी के पुनः किये दर्शन।
वहाँ बाबा जी के चरन चाँपते २० वर्ष पुरानी स्मृति उनके मस्तिष्क में कौंध गई कि तब भी तो महाराज जी की स्नायु-स्थिति ऐसी ही थी !! और वे कहे बिना न रह पाये कि, “बाबा, आपकी स्नायु स्थिति आज भी पूर्ववत ही है एक युवा की तरह !!”