नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त के पुत्र को साँप ने डस लिया, पर महाराज जी ने विचित्र तरीक़े से किया पुनर्जीवित

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त के पुत्र को साँप ने डस लिया, पर महाराज जी ने विचित्र तरीक़े से किया पुनर्जीवित

महाराज जी के भगत श्री ओंकार सिंह जी के पुत्र, युधिष्ठिर सिंह के साथ बाबा महाराज उसी की गाड़ी में भूमियाधार आये थे । रात्रि शयन के बाद सुबह मुँह अंधेरे ही युधिष्ठिर और उमादत्त शुक्ल मंदिर से बाहर आ गये कि अंधेरे अंधेरे में ही शौच आदि से निपट लें । कुछ दूर पर एक पहाड़ी नाले के पास युधिष्ठिर ने शौच के बाद एक चट्टान पर से अपना कोट जैसे ही उठाना चाहा कि उन्हें एक काले नाग (कोब्रा) ने डस लिया।

युधिष्ठिर चिल्लाते हुए मंदिर की तरफ भागे कि, "साँप ने काट लिया", पर आधे मार्ग में ही अचेत होकर गिर पड़े । कुछ ही देर में उनका सारा शरीर विष के प्रभाव से काला पड़ गया और उन्हें अन्य लोग मंदिर के पास ले आये । वे सब प्रकार से मृत हो चुके थे ।

उधर बाबा जी चिल्लाते रहे कि, "युधिष्ठिर मर गया है । इसके बाप को खबर भेज दो ।” कुछ देर बाद उन्होंने ब्रह्मचारी बाबा को डॉट लगाई कि, "देखते क्या हो । इसे खूब तेज चाय पिलाओ ।" ऐसा ही करने का प्रयास किया गया पर मृत (?) को कैसे पिलाई जाती चाय ? तब बाबा जी स्वयँ आये, युधिष्ठिर को डाँट कर कहा, "उठ, चाय पी", और अपने ही हाथों से उसे उठाकर, बैठाकर चाय पिला दी उसके बाद उसको आज्ञा दी कि, “उठो गाड़ी पर बैठो । हमें रानीखेत ले जाओ ।¨

सभी आश्चर्यचकित हो यह तमाशा देखते रहे । बाबा जी स्वयँ उसके बगल में बैठ गये और युधिष्ठिर गाड़ी चलाने लगे !! भवाली पार हो गई । उधर बाबा जी और तेज, और तेज कहते रहे तथा जब भी युधिष्ठिर विष के नशे में झूमने-सोने लगते तभी महाराज जी उनको अपने पाँवों की ठोकर से सचेत कर देते कहते हुए कि, "सोता क्यों है ?"

कैंची भी निकल गई, गरमपानी, खैरना आदि पार हो गये इसी प्रकार, और फिर पुल पार रानीखेत रोड पर गाड़ी दौड़ चली । रानीखेत पहुँचकर हुक्म दिया कि, “वापिस चलो ।” लौटती कुछ देर कैंची में रुके उतर कर अन्यत्र चले गये । तब तक युधिष्ठिर यथेष्ट रूप से सचेत हो चुके थे । उन्हें भूख भी लग आई । तभी देखा कि गाड़ी की पिछली सीट पर ढेर सारे सेव रखे ।। भरपेट सेव खाये और फिर बाबा जी के आने पर पू र्णचेतना में भूमियाधार लौट आये । विष का पूरा इलाज हो गया !!

एक सर्प दंश से मृत प्राय व्यक्ति द्वारा पहाड़ी सड़कों के उतार-चढ़ाव एवं मोड़ों में गाड़ी चलाये जाने की कल्पना पाठक स्वयं कर सकते हैं । (ब्रह्मचारी बाबा के अनुसार इस घटना के बाद महाराज जी तीन दिन अधिकतर कुटी में बन्द रहे रहा तीनों दिन !!) - उनका सारा शरीर काला बना रहा।

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