नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी अचानक एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर पहुँचे और उसकी पत्नी को अपहरण से बचाया

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी अचानक एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर पहुँचे और उसकी पत्नी को अपहरण से बचाया

वर्ष १६५० की बात है । ग्रीष्म काल था । बाबा जी महाराज एकाएक नैनीताल से चल दिये । हम भक्त भी साथ लग लिये । हल्द्वानी से लखनऊ वाली ट्रेन में हम सब महाराज जी के साथ बैठ गये । कहाँ जाना है, किसी को पता न था । नौ बजे के करीब किच्छा स्टेशन पहुँचने पर बाबा जी उतर पड़े गाड़ी से । हम सब भी उतर गये । तब किच्छा में रोशनी का कोई प्रबन्ध न था और आबादी भी न्यून ही थी ।

अंधेरे में ही हम सब एक चाय की दुकान के सामने एक पेड़ के नीचे बैठ गये । तब मुझे महाराज जी ने किच्छा के थानेदार को बुला लाने को कहा । थाना करीब एक कि०मी० दूर एक निर्जन स्थान पर था । अंधकार और उस पर जंगल का रास्ता । मैं किसी तरह एक फ़र्लांग चल पाया था कि महाराज जी पीछ से एक ट्रक में आ गये अन्य भक्तों के साथ । मुझे भी बिठा लिया गया ट्रक में । थाने के सामने ट्रक रोककर एक वृक्ष के नीचे हम सब बैठ गये ।

थानेदार को सर्किल इन्स्पेक्टर पहिले ही डाकुओं को पकड़ने के बहाने वहाँ से हटा चुका था । उसका थानेदार की अत्यन्त सुन्दर स्त्री के लिये कुछ दूसरा ही इरादा था, जिसमें थानेदार के मातहत और वह पुलिस कर्मी भी शामिल थे । परन्तु महाराज जी के आ जाने एवं वही जम जाने से उन सबका कलेजा बैठ चुका था।

उस समय रात के ग्यारह बज चुके थे । पेड़ के पास कई अनजान आकृतियों को देखकर पहले का संतरी शंकिंत होकर पास आकर पूछने लगा तो महाराज जी ने कह दिया, "हम डाकू है।" पहरेदार डर गया। तब एक भक्त ने उसे थानेदार को बुला लाने को कहा, पर वहाँ थानेदार होता तो आता । संतरी ने भी उसकी अनुपस्थिति के बारे में कुछ नहीं बताया और भीतर जाकर थानेदार की पत्नी से डरते हुये सब बातें बता दी कि डाकू आये हैं ।

उत्सुक स्त्री तब चहारदीवारी से झाँकने लगी। सभी ने आश्चर्य से देखा कि बाहर को देखते ही महाराज! कहती वह दौड़ती आई और महाराज जी के चरणों में लोट गई। संतरी मुँह बाये देखता ही रह गया। महिला ने महाराज जी से घर चलने का आग्रह किया तो महाराज जी थाने के क्वार्टर के बरामदे में बैठ गये, कहते हुए कि तेरा पति घर में नहीं है, हम अन्दर नही आयेंगे । बरामदे में ही चाय आई और फिर भोग आदि भी । तब महाराज जी ने महिला को भीतर जाकर किवाड़ बन्द कर सो जाने की आज्ञा दी।

पूर्व में सबने देखा था कि एक पुलिस कर्मी महिला से बहुत घुलमिल कर निःसंकोच बातें कर रहा है, परिवार के सदस्य की तरह । पर्वतीय सरल स्वभाव की वह महिला उसके आचरण को समझ नहीं पाई थी । थानेदार को सर्किल इन्स्पेक्टर पहिले ही डाकुओं को पकड़ने के बहाने वहाँ से हटा चुका था । उसका थानेदार की अत्यन्त सुन्दर स्त्री के लिये कुछ दूसरा ही इरादा था, जिसमें थानेदार के मातहत और वह पुलिस कर्मी भी शामिल थे । परन्तु महाराज जी के आ जाने एवं वही जम जाने से उन सबका कलेजा बैठ चुका था।

सुबह चार बजे महाराज जी उठकर चल दिये। वहाँ से कुछ दूर पर मोटर साइकिल में आता थानेदार, बादाम सिंह भी दिखाई दे गया । उसे रोककर महाराज जी ने दुष्टों के षड्यंत्र के बारे में सब बता दिया । (कि किस तरह उसकी स्त्री का अपहरण होने वाला था) और उसे आज्ञा दी कि इस विषय में बिना शोर किये अपनी पत्नी को नैनीताल उसके सास-ससुर के पास भेज दे । फिर महाराज जी और हम सब पुनः हल्द्वानी (नैनीताल) आ गये । (पूरनदा)

(क्या अपनी स्थिति से अनभिज्ञ इस द्रौपदी ने महाराज जी को पुकारा भी था कि उसकी लाज रखने प्रभु स्वयँ दौड पडे ? - लेखक)

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