नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: गधी के दूध से एक मरते हुए अनजान भक्त को जीवन दान दिया!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: गधी के दूध से एक मरते हुए अनजान भक्त को जीवन दान दिया!

देवी ऑइल मिल्स (हल्द्वानी) में भक्तों से घिरे महाराज जी बैठे थे। इतने में पैंट, कमीज, घड़ी पहने ३०-३५ वर्ष का एक युवक दरवाजे पर हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया बाबा जी ने उससे पूछा, "क्या है ?" उसने कहा, "महाराज ! मेरा भाई बहुत बीमार है । मरने को है । वह आपके दर्शन करना चाहता है मरने से पहले ।"

(उस भाई का अथवा इस युवक का बाबा जी के साथ कभी कोई संपर्क नहीं हुआ था पूर्व में) महाराज जी ने तब कह दिया, “उसे मरने दो, उसका समय पूरा हो गया है ।”

युवक यह सुनकर चला गया पर दूसरे ही दिन पुनः आ गया महाराज जी के पास। कातर होकर बोला, "महाराज ! मेरे भाई ने कहा कि उसकी अन्तिम इच्छा पूरी कर दें आप दर्शन देकर ।" और फिर रोकर बोला, "मैं एक मामूली मास्टर हूँ उसका इलाज नहीं करा पाया ।"

तब करुणानिधान बाबा जी बोले, "अच्छा, हम आ जायेंगे, तुम जाओ । लगा कि महाराज जी ने ऐसा कह कर उसे बहला दिया है । उसके घर का पता तक तो न पूछा था !! परन्तु (आर्त्त की दर्शन हेतु इच्छा की पूर्ति हेतु दूसरे ही दिन वे कुछ भक्तों के साथ लम्बे लम्बे डग भरते कालाढूंगी रोड पर चल निकले । काफी दूर (तब की) उस कंकरीली-पथरीली सड़क पर चलते चलते बाबा जी एकाएक रुक गये झाडियों के पीछे एक मकान के पास ।

और तभी वहाँ से निकल कर वही युवक दौड़ता हुआ आया, महाराज जी को प्रणाम किया और उन्हें भाई के पास ले चला । बाबा जी को देखते ही वह बीमार युवक अत्यन्त प्रसन्न हो उठा और अश्रुपूरित हो बोला, "अब में शान्ति से मर लूँगा, महाराज " हाँ, अब शांति से मर जाना, कहकर महाराज जी बाहर आ गये । (लड़के को तीसरी स्टेज का टी० वी० था, और उन दिनों न तो इतनी बढ़ी हुई इस बीमारी हेतु कोई पक्का इलाज था और न उस टाइम की हल्द्वानी में यह सब संभव ही था । भवाली सेनेटोरियम में ही ऐसे बीमार मरते रहते थे ।)

बाहर आकर वह युवक भी महाराज जी को कुछ दूर तक पहुँचाने आया । रास्ते में तीन-चार गचे चर रहे थे। महाराज जी ने कहा, “इनके मालिक को बुलाओ ।" जब वह आ गया तो युवक से पूछा बाबा जी ने, तेरे पास बीस रुपये हैं ?" उसके पास कहाँ से होते ? पर साथ के भक्तों ने जुगाड़ बैठा दिया । बाबा जी ने वे २०) रु० गधों के मालिक को देकर उससे कहा, "इन बाबू जी के घर रोज सात दिन तक गधी का दूध पहुँचा देना । पहुँचा देगा ?"

वह तो (उस समय के २० रु० देखकर ही मोहित हो चुका था, बोला, "हाँ सरकार " फिर उस युवक से कहा, अपने भाई को मत बताना कि गधी का दूध है। कह देना दवा है। सात दिन में ठीक हो जायेगा । मरेगा नहीं !! बड़ा आदमी बनेगा !!" और बाबा जी हम सबके साथ आगे को चल दिये। भक्तों ने बाद में महाराज जी की कथनी का पीछा किया । पता चला कि मृत्यु का ग्रास बनता वह बीमार युवक बिलकुल स्वस्थ हो चुका था ! (पूरनदा)

(क्या जीवन-दान का यह खेल केवल अकाल मृत्यु से रक्षा की लीला थी ? पुनः, क्या यह जीवन-दान बाबा जी के दर्शन एवं उनकी मौज का प्रतिफल था जिस पर परदा डालने को गधी का दूध माध्यम बना दिया बाबा जी ने ?)

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