नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अपने तत्व-पीठों हेतु स्थल चयन

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अपने तत्व-पीठों हेतु स्थल चयन

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लगभग ५०-५५ वर्षों तक निरन्तर की गई अपनी प्रेम, वात्सल्य, एवं अपनत्व की मनोहारी लीलाओं के प्रभाव से बाबा जी महाराज अपने भक्तों एवं आश्रितों के रोम रोम में इतना समा चुके थे कि उनसे अल्पकालिक विछोह भी ऐसे भक्तों-आश्रितों के लिए असह्य हो उठता । वे सदा ही बाबा महाराज के दरसन-परसन के लिये तरसते रहते थे तथा एक ओर जहाँ ये भक्त इस हेतु इधर-उधर भागते रहते थे, वहीं बाबा जी भी इन भक्तों के भावों की प्रबलता के वशीभूत हो जब-तब स्वयं भी उनके पास पहुँच उन्हें अपने दर्शनों से, अपनी लीलाओं से तृप्त करते रहते थे ।

ऐसी स्थिति में, उनका बिल्कुल ही अन्तर्ध्यान हो जाना कल्पनातीत ही था सबके लिए । बाबा जी महाराज को भी अपने ऐसे भक्तों की अपने प्रति ऐसी भावना का पूरा ज्ञान था । अस्तु, अपनी शरीर लीला के बाद इन भक्तो-आश्रितों शरणागतों को (उनका मन बाँटने को, उन्हें उलझाने को) कुछ न कुछ आधार देना ही था । और उनके स्वयं के तत्व-पीठ रूपी मंदिरों की तुलना में ऐसे आश्रितों के लिये और अधिक विश्वस्त संबल हो भी क्या सकता था । केवल अब तक निर्मित मंदिर और आश्रम ऐसा आधार दे भी तो न पाते।

साथ ही महाप्रयाण के बाद उनकी कल्याणमयी लीलाओं की निरन्तरता हेतु भी बाबा जी के इन तत्व-पीठों को भी तो स्वयं बाबा जी महाराज की ही भूमिका निभानी थी । अतएव महाराज जी ने पूर्व से ही बड़े सुनियोजित ढंग से अपने ऐसे मंदिरों की स्थापना के लिये स्वयं ही वांछित स्थानों में स्थल चयन भी कर डाला !! और अपने इस संकल्प को किसी से भी बिना प्रगट किये, बिना स्पष्ट किये ही बाबा जी महाराज ने केवल अपनी मनसा-शक्ति से ही भक्तों को भी इस ओर प्रेरित कर उन्हीं उन्हीं चयनित स्थलों में ही अपने मंदिर भी बनवा लिये || इस चयन प्रक्रिया में भक्तों का कोई योगदान नहीं रहा और न उनकी मंशा ही ।

यद्यपि हमने इन मंदिरों को समाधि-मंदिरों की संज्ञा दे डाली, जी महाराज के स्वयं के मंदिर हैं उसी प्रकार जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, तथापि सही अर्थ में ये मंदिर समाधि-मंदिर न होकर नित्य-लीला रत बाबा हनुमान जी एवं शंकर जी आदि के मंदिर होते हैं, पर इन मंदिरों से भिन्न भी, क्योंकि इन मंदिरों में बाबा जी महाराज की मूर्तियों के नीचे उनके दिव्य लीला-शरीर के अवशेष फूल भी प्रतिष्ठित हैं । अस्तु, ये मंदिर समाधि-मंदिर न होकर महाराज जी के तत्व पीठ हैं जहाँ बाबा जी महाराज अब अपने लीला-शरीर के अवशेषों के रूप में अपने सम्पूर्ण तत्वों, शक्ति एवं मूर्ति रूप से अपना ही स्वरूप लेकर स्वयँ विद्यमान हैं और वही लीलाएँ कर रहे हैं जैसे स-शरीर करते रहे थे ।

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