नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी के आयुष्मान भव व श्री माँ के आशीर्वाद से बची भक्त की जान
अलौकिक यथार्थ के संकलन-कर्ता राजदा की पत्नी, कमला जी वर्षों पूर्व आतों की बीमारी से पीड़ित हो गईं थीं जिसके कारण उनके फेफड़े भी बुरी तरह प्रभावित हो चुके थे। हड्डी का ढाँचा ही कमला जी की पहिचान रह गई थी । बाबा महाराज ने तब उन्हें अपने अमोघ आशीर्वाद (प्रणाम करने पर आयुष्मान भव से) - रोगमुक्त कर दिया था, और वे शीघ्र ही स्वस्थ हो गईं ।
आठवें दशक से वे कैंची धाम में अथक सेवा में समर्पित हो गईं । परन्तु एक बार बिगड़ चुकी आँतों ने उन्हें पुनः दबोच लिया, और इस बार उन्हें भीषण रूप के जलोदर रोग ने थाम लिया । उनकी ऐसी मरणासन्न अवस्था में उन्हें कैंची धाम से मेरठ विदा करते वक्त सभी का एक ही भाव था उनकी अंतिम विदाई का ।
किन्तु श्री माँ-महाराज अपनी इस अनन्य सेविका को ऐसे क्योंकर छोड़ देते ? और बाबा जी की अमोघ वाणी आयुष्मान भव (लम्बी आयु हो) कैसे अकारथ जा पाता ? मेरठ पहुँचकर उनका इलाज तो हुआ, परन्तु वह माँ-महाराज की कृपा का लौकिक रूप ही था। और कुछ काल बाद कमला जी यथोचित शक्ति-सामर्थ्य न होने पर भी पुनः उपस्थित हो गई कैंची धाम में सेवा हेतु प्रदत्त आत्मबल का संबल लेकर ।
कुछ वर्ष ऐसे ही बीत गये परन्तु १६६२ ( अक्टूबर) में धाम में ही रात के समय उन्होंने रक्त वमन करना प्रारम्भ कर दिया जो सुबह तक होता रहा । सभी से, (यहाँ तक कि राजदा से भी) वे इस तथ्य को छिपाती रहीं कि जानने पर माँ को कष्ट होगा । परन्तु माँ से कब कोई कुछ छिपा सका है ।
सुबह ही वे कमला जी के पास पहुँच गईं और उन्हीं के सामने भारी मात्रा में पुनः रक्त वमन हो गया तब श्री माँ की आज्ञा से हम उन्हें रैमजे अस्पताल ( नैनीताल) ले गये जहाँ भी केवल सूक्ष्म-रूप का उपलब्ध उपचार ही किया जा सका । कई माह से ऐनेमिक (रक्तहीन) चल रही कमला जी अब तक बार बार रक्त वमन के कारण चेतनाहीन हो चली थीं।
तब उनके पुत्र दिवाकर पाण्डे तथा भाई प्रमोद पंत के आ जाने के बाद ही माँ ने आज्ञा दी कि कमला जी को मेरठ ले जाकर उपचार कराओ, यद्यपि तब तक कमला जी की हालत ऐसी हो चली थी कि न तो उनकी आँतें-फेफड़े, न अवयव तथा स्नायु ही टैक्सी में रास्ते के झटके सह सकते थे। (यही होता कि और भी रक्त वमन होता और इति-श्री भी हो सकती थी।) परन्तु डाक्टरों की राय के विरुद्ध भी माँ ने कह दिया, कुछ नहीं होगा कमला को ठीक हो जायेगी - "केवल पैसे खर्च होंगे ।"
यही हुआ । कमला जी मेरठ पहुँच गईं, और उनके जीवन की आशा के प्रति सशंकित डाक्टरों के विविध प्रकार के उपचारों के बाद कमला जी ने धीरे धीरे पुनः स्वास्थ्य लाभ कर लिया और गुरु पूर्णिमा (१६६३) को वे पुनः श्री माँ-महाराज के श्री चरणों में सेवा हेतु उपस्थित हो गई कैंची धाम में !! बाबा महाराज का अमोघ आशीष आयुष्मान भव श्री माँ के रक्षाञ्चल तले सक्रिय है ! (१६६६) - (मुकुन्दा)