नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी की व्यापकता पर एक गाँव की महिला ने डाला प्रकाश
वृन्दावन में मैं माँ के साथ बैठी थी महाराज जी के मंदिर के आगे (तब के) बने कच्चे हवनकुंड वाले चबूतरे पर। तभी एक वय-प्राप्त महिला आ गई दर्शनों को। माँ के पास भी आ गई। माँ ने मुझे उकसाया, “रमा ! इससे पूछ बाबा जी के बारे में ।” मैंने भी तब उससे बाबा जी के बारे में कुछ बताने को कहा । (वृद्धा अकबरपुर की ही निकली) बोली, “का बताऊँ बाबा की ? एक हो तो बताऊँ । मौसा लगें थे हमारे ।”
मैंने पूछ दिया, “सगे ?" बोली, “अरे ! सगे-वगे नाँय । गाम (गाँव) के नाते हम मौसा कहें थे उनसे । आय कै हमारी चार दीवारी (चहार दीवारी) पर बैठ जायें और हमारी दुख-सुख की सुन लेवें थे । एक दिना हम दूर के कुआँ से पानी लाय रही थीं । सो पूछ बैठे का करेगी पानी कौ ? हमने कही- ऊपर छत्त पै डारूंगी ठंडा करिबे कौ और फिर बिछौना डारूंगी वापै सोइबे कौ ।
तब बोल पड़े, अरे का करैगी पानी डारिकै अभी मेह बरस जावैगौ । मैं बोली बिल्कुल सफा है है। तो बोले कहा कौ बरसैगौ मेह आसमान तो धूप चमक रही हैगी तू तो बावरी है ऊपर गरम हवा और मारै हमारी नाँय मानैगी । और उठकर चले गये। हमने छत्त पै खूब पानी डारौ, वापै बिछौना डारौ और चली आई नीचे कूं । अरे बप्पा रे! थोड़ी ही देर में वो आँधी चल पड़ी और फिर वो मेह बरसौ कि कही नाँ जाय। दौड़ी दौड़ी जाय बिछौना समेटौ और नीचे भाजि कै दम लीनौ । ऐसे हते बाबा जी सब कुछ जानने वारै ।”
और फिर माँ की तरफ हाथ हिला हिला कर बोली, “अरे! तुम का जानी उनकी बात । तुम तौ भीतर ही बैठी रहती हौ ।” माँ सुनकर उसकी प्रेम भरी बातों का रस लेती हँसती रहीं ।
मैंने फिर पूछ दिया, "और कुछ ?” तो बोली, “और का का बताऊँ। दिसा-मैदान से आय रही थी लोटा पकड़े। हाथ भी नाँय धोऔ हतौ । कई दिना से हाथ में पीर हती दीवार पर बैठे। बोले ठीक से उठतौ भी नाँय रह्यौ । मिल गये का बात है, दुखी दिख रई है।
हमने कही बहुत पीर है हाथ में कई दिना से बोले गई पास- तो मेरी हाथ लैके उल्टी हथेली पै चार-पाँच दफे चूम के छोड़ ह्याँ आ । मैं वैसे ही चली दओ । बस! हम तो दर्द से तबै छुट्टी पाय गईं, और आज तक कोऊ तकलीफ नाँय भई हाथन में ।” फिर वृद्धा चली गई । (रमा जोशी)
क्या महत्त्व था उस साधारण बुढ़िया का बाबा जी की इतनी बड़ी ऋष्टि में ? न विशेष रूप की भगत, और बाबा जी की लीलाओं में किसी विशेष रूप की पात्र ही केवल एक नगण्य प्राणि-मात्र इतने बड़े संसार में । पर बाबा जी के सम्पर्क में आ गई और दया पा गई उनकी मम प्रिय सब मम उपजाये !!'