नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: निराशा में आशा की किरण थे और हैं महाराज जी
पूज्य बाबा जी की कृपा से हमारा लखनऊ में विवाह हुआ। पूज्य पिता जी स्व. डॉ. चन्द्रशेखर द्विवेदी उनके अनन्य भक्त थे, किन्तु मेरी शोध निर्देशिका आदरणीय डॉ. विमलेश शर्मा भी बाबा की परम भक्तों में एक हैं। मैंने जब अपना शोध-प्रबन्ध सम्पन्न कर विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया, उस समय भी बाबा की कृपा से रातोंरात कार्य पूर्ण करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। कुछ ही दिनों बाद विवाह की तैयारी शुरू हो गयी थी। जब जब निराशा हुई, तब-तब आशा की किरण बनकर, बाबा ने अपना वरदहस्त प्रदान किया। चार वर्ष की अवधि समाप्ति पर शोधकार्य सुचारु रूपेण पूरा हुआ।
विश्वविद्यालय नियमानुसार दो परीक्षकों से मौखिकी सम्पन्न कराने का विधान है, किन्तु मेरे परीक्षकों में केवल गुरुकुल कागड़ी विश्वविद्यालय से डॉ. भगवदत्त पाण्डेय ही आये। गोरखपुर से परीक्षक नहीं आ सके। रजिस्ट्रार महोदय ने परीक्षा न कराने हेतु परीक्षक को दो टूक जवाब दे दिया।
परीक्षक को क्षोभ हुआ और वह कुलपति से मिले तथा विद्यार्थी की परिस्थिति तथा परीक्षा लेने हेतु का पुनः न आने का वचन सुनकर कुलपति को विवश होकर अनुमति देनी पड़ी और मेरी मौखिकी बाबा की कृपा से सम्पन्न हो गयी। मेरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गयी। बाबा ने मुझे निराशा में आशा की किरण बनकर सम्बल प्रदान किया। मैं उनकी हृदय से आभारी हूँ और उनका पावन पुण्य तिथियों पर ही नहीं सदैव स्मरण करती रहती हूँ।
!! राम !!
-डॉ. मृदुला द्विवेदी, लखनऊ