नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: रहते थे कैंची धाम में पर हर साल ना जाने कैसे मैनपुरी जा 'बहन' से बँधवाते थे राखी
मैनपुरी के भगत श्री राम रतन वर्मा जी का जब वर्ष १९५६ में शरीरान्त हो गया तो उनकी पुत्री, श्रीमती शान्ती अत्यन्त दुःखी हो गई । महाराज जी जब उनके पास गये तो वे रोती हुई बोलीं, “महाराज, मेरा कोई भाई भी तो नहीं है, पिताजी भी गये, अब राखी किसके बाधूंगी ?
" तब महाराज जी बोल उठे, “मैं तो हूँ । तू मुझे बाँधना राखी । मैं आऊँगा तेरे पास ।”और अपने इस वचन की पूर्ति हेतु महाराज जी पूरे १७ वर्ष तक शांति जी से राखी बँधवाने मैनपुरी में उनके पास जाते रहे और उपलक्ष में उन्हें रुपये भी देते रहे !!
परन्तु तब उनके पति वीरेन्द्र जी को और शांति जी को इस रहस्य का इमकान तक न था कि इन १७ वर्षों में रक्षा बन्धन के पर्व में महाराज जी राखी के पूर्व भी, राखी के दिन भी और उसके बाद भी ग्यारह वर्ष पर्यन्त (पूरे दिन) कैंचीधाम में ही विराजमान थे. भक्तों से राखी बँधवाते !! न मालूम कौन शरीर जाता था बाबा जी का मैनपुरी राखी बँधवाने !!