नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : वेश बदल कर, देव, सन्तों का आना

नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : वेश बदल कर, देव, सन्तों का आना

एक बार महाराज जी ने मुझसे कहा कि कुम्भ के मेले में अकेले मत जाओ, खो जाओगे। तब मैं महाराजजी के संग में मेले मे गया। उनका कम्बल मैंने पकड़ रखा था, ताकि मैं खो न जाऊँ । तभी एक लम्बा, तगड़ा, प्रचण्ड सा दिखने वाला व्यक्ति महाराजजी से मिला एक बहुत ही नज़दीकी परिवार वाले की तरह बाबा को बाँहों में भर लिया ।

अब दोनो ने नाचना आरम्भ कर दिया बाँहों में बाँहें डाले और गाने लगे," लिलयरी " बार बार यही गा रहे । 2 मिनट तक यही चलता रहा । पहली बार मैंने महाराजजी को इस तरह डाँस करते देखा । मैं उस व्यक्ति के पाँव छूना चाहता था क्यूँकि मैंने सुना था कि हनुमान, बड़े बड़े सन्त, कई देव रूप बदल कर इस मेले में आते है ।

पर मैं नहीं छू पाया । क्यूँकि अचानक ही वे व्यक्ति ग़ायब हो गया । मैं हमेशा पछताता रहा कि मैं उन को छू नहीं पाया । कितने वेशों में सन्त- देव बाबा से मिलने आते । जिन्हें महाराजजी के सिवा कोई नहीं पहचानता था ।

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