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नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जा बच गया तेरा बाप!
वर्ष १९७२ की बात है । अलीगढ़ में विशम्भर जी मरणान्तक रूप से बीमार हो गये । जीवन की आशा छूट चुकी थी । डाक्टर जबाब दे चुके थे । तभी अत्यन्त हताशावस्था में उनके पिता जी ने अपने पोते, मुन्ना को एक पपीता देकर कहा, "बेटा, अब एक ही आस रह गई है । तुम पपीता लेकर वृन्दावन जाओ और बाबा से कह देना सब कुछ ।
उनकी जो मर्जी होगी वही होगा ।” रोता हुआ मुन्ना वृन्दावन आश्रम पहुँचा तो वहाँ महाराज जी नहीं थे । वह बहुत दुःखी हो गया इसे भावी समझ । पर तभी बाबा जी आ गये जीप में । आते ही मुन्ना से बोले, "अब क्यों रोता है । जा, बच गया तेरा बाप ।"
केवल पिता की आर्त पुकार (परम विश्वास के साथ) ही गजेन्द्र की पुकार बन गई विशम्भर जी को जीवनदान देने के लिए ।