नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जाओ अब तुम्हारे घर में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी !!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जाओ अब तुम्हारे घर में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी !!

सिपाहीधारा (नैनीताल) के श्री रमेश चन्द्र पाण्डे जी अपने ८६ प्राणियों का परिवार लिये (तब) कुछ गर्दिश के चक्कर में पड़े थे । परन्तु फिर भी घर में जो कुछ भी उपलब्ध होता, उसी को लेकर बड़ी बेटी शान्ता और उसकी माँ पहुँच जाते बजरंगगढ़ बाबा जी के पास, और बाबा जी भी “क्या लाई है ?” पूछकर ग्रहण कर लेते उसे उसी वक्त बड़े प्रेम से –समृद्ध भक्तों द्वारा लाये गये नाना प्रकार के भोग पाते हुए भी । शान्ता जी ने इस संदर्भ में अपने अनुभव सुनाये

एक दिन मैं इसी प्रकार जौ-चने-गेहूँ के मिश्रित आटे की रोटियाँ तथा लाई (राई) की सब्जी लेकर जब महाराज जी के पास पहुंची तो देखा कि नैनीताल के एक सम्पन्न भक्त महोदय (सपरिवार) एक बड़े से टिफनदान में बाबा जी के लिये भोग लेकर पहुँच गये । उनकी बहू ने मेरे सामने चाँदी की थाली एवं कटोरियों में वह भोग परोसकर महाराज जी के सामने रखना प्रारम्भ कर दिया।

यह सब देखकर मैंने अत्यन्त संकोच से अपनी रोटी-सब्जी का कटोरदान चुपचाप छिपा लिया, पर अन्तर्यामी ने मुझसे पूछ ही लिया रोज की तरह, “क्या लाई है ?” मैंने कह दिया, "कुछ नहीं महाराज ।" तब बाबा जी ने डाँटकर कहा, “देती क्यों नहीं जो लाई है ?” सहमकर मैंने वह कटोरदान बाबा जी की तरफ झिझकते हुए बढ़ा दिया, पर मन ही मन रुदन का उच्छ्वास उमड़ पड़ा मेरे अन्तर में उन महोदय के उस भोग के समक्ष अपना रोटी-सब्जी का कटोरदान देखकर।

कटोरदान खुला तो वे महोदय कुछ रोषपूर्ण शब्दों में बोल उठे, “हुँ ! ये खायेंगे महाराज ?” और फिर अपनी बहू की तरफ देख बोले, "थाली क्यों नहीं देती महाराज को ?” और बहू ने थाल आगे बढ़ा दिया। अन्तर में वैसे ही भरी थी मैं। उन सज्जन की बात सुनकर आँखे बरस पड़ी मेरी और मैंने सिर नीचे कर छिपा लिया उन्हें ।

पर अन्तर्यामी तो सब जान ही गये मेरी दशा और साथ ही उन महोदय के अहंकार को भी (यद्यपि मुझे मालूम था कि उनका महाराज जी के प्रति प्रेम मेरे प्रेम से कई गुना अधिक था और कि वे जो कुछ कर रहे थे प्रेमवश ही ।) महाराज जी ने उनका थाल कुछ दूर हटा मेरी रोटी-सब्जी पाना प्रारम्भ उनके थाल कर दिया !! यह देखकर मैं और भी टूट-बिफर गई । तभी बाबा जी ने उन महोदय की भावना में लगी चोट पर भी मरहम लगा दिया थाली से थोड़ा थोड़ा भोग ग्रहण कर ।

पर जब सबसे मधुर व्यंजन मेवों से भरी तालमखाने की खीर का नम्बर आया तो महाराज जी ने उसमें से थोड़ा पाकर कटोरी मेरी तरफ बढ़ा दी !! "ले, इसे तू खा ले ।” मेरे काटो तो खून नहीं । मेरे संकोच को देखते हुए बाबा जी डाँटकर बोले, “खाती क्यों नहीं ?” एक तरफ बाबा जी की डाँट और दूसरी ओर इस घटना से उन भक्त सज्जन के मुँह पर उतार-चढ़ाव इसी माहौल में मैंने रोते हुए वह खीर एक साँस में गटक ली उसमें बिना किसी प्रकार का स्वाद पाये !!

उसके बाद परम आशीर्वाद मिला, “जाओ अब तुम्हारे घर में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी !!”

-- शान्ता पाण्डे

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