नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : अभिलाषा की पूर्ति

नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : अभिलाषा की पूर्ति

इलाहाबाद में डा़ ब्रह्मस्वरूप का मकान था और वही वे सेवाभाव से होमियोपैथिक चिकित्सा भी किया करते थे। आपने बताया कि मेरे पास कभी कभी असाध्य रोगों के मरीज आते थे और कहते हमें बाबा नीब करौरी ने आप के पास भेजा है।

मैं उनका इलाज करता और वह शीघ्र ठीक हो जाते ! मुझे बहुत आश्चर्य होता कि मेरी दवा बाबा के भेजे भक्तों पर कितना अच्छा कार्य करती है, उतना दूसरे मरीज़ों पर नही। मैं बाबा को जानता नही था और उन्हें देखा भी नही था। इस कारण मुझे उनके दर्शनों की बहुत अभिलाषा थी ! मगर धन्धे को छोड़ कर उन्हें खोजना मेरे लिये सम्भव नही था!

एक दिन अपने नम्बर पर एक लम्बा चौड़ा व्यक्ति, कम्बल ओढ़े, नंगे पैर, अपने एक व्यक्ति के साथ मेरे कमरे में प्रविष्ट हुआ। पूछने पर उसने बताया कि वह हथेली मे कुछ गर्मी महसूस कर रहा है। मैंने निदान के लिये कुछ प्रश्न पूछे ! पर किसी का खास उत्तर नही मिला और वो व्यक्ति बोला "जो दवा तेरी समझ में आवे दे दे !"

मैं, उसके व्यवहार पर विचलित हुआ, पर मैंने ३ दिन की दवाई बना दी ! वह बोला "इतनी थोडी दवा से क्या होगा ?बहुत तादाद में बना दे, अब हम जा रहे है, फिर नही आएँगे!" उसने अपने साथ आये आदमी को मुझे २० रूपये देने को कहा ! पर मैंने मना कर दिया क्योंकि वह देखने पर मुझे कोई बाबा लग रहे थे ! मैं अपनी व्यस्तता के कारण सोच नही पाया कि वह नीब करौरी बाबा भी हो सकते है !

जाते हुए २० रूपये वह मेरे मेज पर रख गये ! मैंने उन नोटों को दान- पेटी में डाल दिया। इसके बाद दूसरा मरीज मेरे कमरे में आया तो वह बोला "आप जानते है कि अभी आपके कमरे से जो बाहर गये है, वह कौन थे ?" मेरे मना करने पर उसने कहा कि वह बाबा नीब करौरी थे, भारत की यह महान विभूति आपके द्वार पर दो घण्टे आपकी प्रतीक्षा मे बैठी रही।

यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया ! मुझे अत्याधिक ग्लानि हुई कि मैं अज्ञानतावश, बाबा का यथोचित सम्मान ना कर सका ! मैं बाहर भागा, बहुत खोजा मगर बाबा ना मिले !

जय गुरूदेव

आलौकिक यथार्थ

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