नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: उनका मुझे पहले मीठी लस्सी फिर नमकीन लस्सी पिलाना, और मेरा स्वास्थ्य अचानक अच्छा हो जाना!
प्रभु के हनुमानगढ़ प्रवास के समय की बात है। मेरा स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था । शरीर में जगह-जगह हड्डियाँ दिखने लगी थीं । कमजोरी अत्यधिक हो उठी थी । खाना पचता न था, उल्टी आने को हो जाती भोजन के समय ।
मैं महाराज जी के ही साथ था बजरंगगढ़ में । एक दिन सुबह उठकर मुझे (सिपाहीधारा) पाण्डे जी के घर ले गये । वहाँ कहा, “मेरे लिये लस्सी बनाओ ।” लस्सी बनकर आई तो एक-दो चुस्की लेकर गिलास मुझे देते हुए कहा, “पूरन, इसे तू पी ले ।” इच्छा न होते हुए भी मैंने वह मीठी लस्सी उतनी सुबह की ठंड में पी ली । पुनः दूसरे भक्त घर जा पहुँचे ।
वहाँ आज्ञा हुई, “नमकीन लस्सी बनाओ ।” वह भी आ गई और पूर्व की भाँति कुछ पीकर गिलास मुझे दे दिया। अब और भी अरुचि के साथ मैंने वह गिलास भी खाली कर दिया। प्रभू तब पुनः हनुमानगढ़ की ओर चल दिये। सिपाहीधारा से सड़क तक की चढ़ाई और फिर गढ़ की तलहटी तक कुछ सड़क की यात्रा ।
तब बोले, “पूरन, लोटे में पानी लाओ, शौच जाऊँगा ।” उधर लस्सी पीकर मैं स्वयँ बेहाल था। किसी तरह लोटा-पानी का प्रबन्ध कर उनके पास जाने लगा तो उदर पीड़ा से बेहाल मैं स्वयं ही सड़क के किनारे शौच के लिए बैठ गया। देखा कि पेट से तर्जनी उँगली से भी मोटा एक हाथ का केंचुआ निकल आया !! उसके साथ ही न केवल पेट में वरन मन-मानस में भी परम शांति अनुभव करता जब मैं पुनः लोटा भर कर महाराज जी के पास पहुँचा तो ये मुझे देखते हँस रहे थे ।
स्वयँ शौच नहीं गये। उसके बाद मेरा स्वास्थ्य स्वतः संभलने लगा। परन्तु समझ में नहीं आया कि यह सब मीठी-नमकीन लस्सी का प्रभाव था या महाप्रभु द्वारा उस लस्सी को अपना प्रसाद बना देना था। (पूरनदा)