नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्तों को जीवन व मृत्यु के सार को समझाया!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्तों को जीवन व मृत्यु के सार को समझाया!

केवल सूक्त-रूप में, गिने शब्दों में अध्यात्म पर कठिन से कठिन, गहन से गहन जिज्ञासाओं एवं शंकाओं का निराकरण करने में महाप्रभु अपना सानी नहीं रखते थे। साथ में (अपने को छिपाने हेतु) हँसते हुए कहते भी जाते, "हम कुछ नहीं जानते, हमसे मत पूछो। परन्तु उत्तर पाने वाला पूर्णरूपेण संतुष्ट हो जाता । (स्व०) किशन लाल साह (रामगढ़) द्वारा एक दिन पूछे जाने पर कि“सांसारिक जंजाल से कब मुक्ति मिलती है ?" बोले, “जब मोह खत्म हो जाता है ।" "मोह कैसे खत्म होता है ?" "उसकी कृपा से ।” “उसकी कृपा कैसे होती है?" "उसका स्मरण करने से भाँय-कुभाय !!"

एक अन्य अवसर पर, बाबा जी के पास वर्षों से आने के बाद भी अपनी कुछ भी (आध्यात्मिक) प्रगति न होती देख किशन लाल बड़े उद्देलित होते हुए बोले, “महाराज ! हम तो यों ही मर जायेंगे", (बिना कुछ प्राप्ति के ही) तो आप संदर्भ को मोड़ देते हुए तपाक से बोल उठे, "तू भी मर जायेगा, मैं भी मर जाऊँगा और (दूर खड़े शिव सिंह को इंगित कर) वो भी मर जायेगा । कोई नई बात कहो ।" (मृत्यु तो एक अनादि सत्य है।)

और भी कि, "तेरे हाथ में कुछ है तो हमको भी बता ।" (अर्थात मनुष्य के नियंत्रण में कुछ भी नहीं है - सब कुछ केवल उसी की इच्छा से होता है ।) इसीलिए प्रार्थना रूप भक्तों से कहलाते रहते, "दीन बन्धु दीनानाथ, मेरी डोरी तेरे हाथ ।"

और ऐसे ही मृत्यु का प्रसंग उठने पर सीख देते कि, "यह तो मृत्युलोक है, जो आया है वह एक न एक दिन जायेगा ही । कौन, कब चला जायेगा - किसी को नहीं मालूम । इसलिए गुरु, भगवान और मृत्यु को सदा याद रखना चाहिए ।”

(वस्तुतः बाबा जी की इस उक्ति में मृत्यु शब्द केवल अपनी ही मृत्यु की स्मृति रखना न होकर संसार की क्षण-भंगुरता को ही इंगित करता है चाहे संसार विभिन्न पारिवारिक सम्बन्ध का हो और चाहे समाज, अर्थ अथवा वैभव आदि से जुड़ा हो - सार में, स्वर्गउ स्वल्प अन्त दुखदाई । और कि, इस क्षण-भगुरता की सतत स्मृति केवल गुरु-पद स्मरण एवं नाम-जप से ही संभव है ।)

किशन लाल ने बाबा महाराज की इस गूढ़ उक्ति को हृदयंगम कर जीवन पर्यन्त यही किया ।

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