नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ: शमशान भूमि पर हनुमान मंदिर की स्थापना हेतु लोगों को प्रेरित करना
स्थानीय जनता को उस घाटी के बजरी के पहाड़ पर, जो पार्श्व में ही एक प्रकार की श्मशान भूमि होने के कारण जनता की दृष्टि में सर्वथा तज्य एवं हेय थी, हनुमान जी का मंदिर स्थापित करने के लिए एकाएक प्रेरित नहीं किया जा सकता था यह भी बाबा जी भली भाँति जानते थे ।
अतएव नैनीताल में अपनी अन्य लीलाओं के साथ किसनपुर (कृष्णापुर नैनीताल से करीब १ कि०मी० दूर घाटी की ओर) से आगे प्रतिदिन एक एक पैरापेट ।सड़क के किनारे खड्ड की तरफ टुकड़ों में बनी चहार दीवारी) पर बाबा जी शाम-शाम को बैठ जाते थे । भक्त समुदाय भी वहीं एकत्रित हो जाता ।
सड़क के किनारे ही चाय भी बन जाती । भक्तों द्वारा लाये गये भेंट-प्रसाद से भण्डारे भी चालू हो जाते और महाराज जी कुछ इने-गिने भक्तों के साथ कभी कभी रात भी वहीं बिता देते । यही क्रम कई दिनों तक रुक रुक कर चला और आगे आगे बढते. एक दिन पगडंडी की राह बाबा जी उस बजरी के पहाड़ पर भी चढ़ गये और वहीं आसन भी जमा लिया !!
भक्तों की भीड़ भी वहीं आने लगी। दिन के समय माइयाँ भी पहुंच जाती थीं तरह तरह के भोग-प्रसाद लिये । छोटे-मोटे भण्डारे भी चलने लगे वहीं (घोर श्मशान भूमि के पार्श्व में 10 चाय भी बनती, प्रसाद भी वितरण होता, पाठ भी चलते और बाबा जी महाराज का आरती-पूजन भी ।
ढेरों प्रसाद का वितरण होता रहता । जितना भी, जो कुछ भी प्रसाद रूप आता सब पूरा का पूरा उसी दिन बॅट जाता। खाली नहीं करोगे तो भरेगा कैसे ? - यही कहते रहते महाप्रभु।
भीङ बढ़ने लगी । कीर्तन, भजन, सुन्दरकाण्ड एवं हनुमान चालीसा के पाठ गूंजने लगे । संध्या समय सब चले जाते । पर कभी कभी बाबा जी बिना छप्पर-छाँह के रात भी वहीं बिता देते धूनी जलाकर भक्तों के साथ । कुछ पक्के भक्तों के साथ ।
क्रमशः कल
(अनंत कथामृत से साभार)