नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: कम्बल के नीचे से निकले पराठे, खा लो ये राम का प्रसाद है!
एक दिन एक भक्त को, जिसका मंगलवार का व्रत था, आश्रम का भण्डारी दूध देना भूल गया । उस भक्त ने तो कुछ नहीं कहा परन्तु महाराज जी से कौन बात छिप सकती थी ? आधी रात के बाद उसे बुला भेजा अपनी कुटी में और पूछा, “तूने कुछ खाया पिया कि नहीं ?” सत्य बताने पर महाराज जी को कष्ट होगा यही सोच कर उसने कह दिया, "हाँ, महाराज मैंने दूध पी लिया था ।”
परन्तु महाराज जी को (उन्हीं के शब्दों में) कौन बावला बना सकता था । उसी वक्त भण्डारी को भी नींद से जगाकर बाबा जी ने बुला भेजा और उसको खूब डांटा । इस पर उसने स्वीकार कर लिया कि वह इन्हें दूध-खीर देना भूल गया था ।
भण्डारी को विदा कर महाराज जी ने कमरा बन्द कर लिया और भक्त को पास बुलाकर कहा, “अब तो आधी रात से अधिक समय हो गया है, दिन पलट चुका है । खालो अब ।” और ऐसा कहते कहते कम्बल के नीचे अपनी धोती से गरमागरम पाँच परांठे और दो सब्जियाँ निकाल कर उसे देते हुये कहा, “यह राम का प्रसाद है, खालो ।”
और जब वह प्रसाद को लेकर बाहर जाने लगा (कि प्रभू के सामने कैसे खाऊँ ?) तो महाराज जी ने उसे आज्ञा दी कि, “नहीं, यहीं बैठकर खाओ” (ताकि बाहर अन्य लोगों को उनकी यह लीला मालूम न होने पाये।) खाना पूरा होते होते महराज जी ने उसके लिये उसी प्रकार मंगलवार का मीठा प्रसाद खीर भी उत्पन्न कर उसे दे दी !! और फिर उसके पूरन हो जाने पर अपने ही पात्र से उसे पानी भी पिला दिया !! जाते जाते आदेश भी कर दिया कि “किसी को मत बताना।” (महासमाधि के बाद ही यह लीला अनावृत हुई ।) (अलौकिक यथार्थ से अनूदित ।)