बाबा नीब करोली की अनंत कथाएँ : दूर-दर्शन
वामी निर्मलानन्द जी कहते है एक बार मैं परिब्राजक यात्रा में शिवानन्द आश्रम ऋषिकेश से पर्वतीय मार्ग से कैंची आश्रम पहुँचा। वहाँ मैंने बाबा नीब करौरी के दर्शन किये ! मुझे देखकर वे बोले, " तू ऋषिकेश से आ रहा है क्या ?" मेरे स्वीकार करने पर वे कहने लगे , " तू गुरू को क्या समझता है ?"
उसी समय मेरे मुख से निकला गुरूब्रह्मा गुरूविर्ष्णु गुरूदेवो महेश्वर, गुरू साक्षात परब्रह्म तस्में श्री गुरूवे नमः "! इस पर बाबा बोले " इस श्लोक के केवल कहने से कोई प्रयोजन नहीं है, तू अब सीधा सीधा वापिस चला जा !"
मैं उनके आदेश का गुप्त रहस्य नहीं समझ पाया ! बाबा की दृष्टि उस समय मेरे गुरू स्वामी शिवान्नद जी पर थी, जिनकी दशा शोचनीय होती जा रही थी, निर्मलानन्द जी स्वंय कहते है यह वही समय था जब उनके गुरु देव को लकवा मार गया था और २१ दिन बाद उनकी महा सामाधि हो गयी !
जय गुरूदेव
आलौकिक यथार्थ