नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मुक्त भाव से बँट रहा था प्रसाद

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मुक्त भाव से बँट रहा था प्रसाद

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एक दिन भाव में आकर सुबह के समय ही मैंने सरकार के श्री चरणों में कुछ द्रव्य अर्पण कर दिया प्रसाद वितरण हेतु जिसे दादा को बुलाकर बाबा जी ने उन्हें सौंपते हुये विनोद में कहा "लो दादा, आज खूब प्रसाद बँटेगा ।” सुनकर मन में अत्यंत ग्लानि हो उठी कि उतने न्यून द्रव्य से खूब प्रसाद क्यों कर बँट पायेगा ।

उस दिन आफिस से जल्दी आकर जो सीधा बाबा जी के पास गया तो फाटक से ही देखा कि लोग दोनों हथेलियों में भरकर प्रसाद ले जा रहे हैं । आत्म-तृप्ति से सराबोर (कि मेरा प्रसाद बँट रहा है) मैं जब भीतर गया तो ८-१० लोग और भी खड़े थे हथेलियों में प्रसाद समेटे, तथा अन्य कुछ और भी पा रहे थे भरपूर प्रसाद ।

मेरे अल्प द्रव्य से इतना प्रसाद ? तभी घट-घट के जाननिहार बाबा जी ने मुझसे डांट कर कहा, “खड़े खड़े क्या देख रहे हो ? दादा की मदद क्यों नहीं करते ?” (प्रसाद बाँटने में ।) दादा के पास मेज के पीछे पहँचा तो देखा वहाँ दो टोकरो में ढेर-सा प्रसाद रखा है !! अपने होश में आ गया तब मैं ।

अब मुख्य तथ्य इस लीला का यह है कि वहाँ जंगलात विभाग का जो एक अफसर अपनी पत्नी के साथ (जिसकी गोद में २-३ माह का एक बच्चा था) बाबा जी के श्री चरणों में बैठा था, वह निःसंतान था ६-७ वर्ष के विवाहोपरान्त तथा कई प्रकार के उपचारों के बाद भी, और पिछले वर्ष महाराज जी ने उसे पुत्र प्राप्ति हेतु आशीर्वाद दे दिया था ।

बाबा जी महाराज के इस अमोघ आशीर्वाद के फलस्वरूप उसे जब पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो वह अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने इतना ढेर प्रसाद लाया था अर्पण करने। वही प्रसाद मुक्त भाव से अब बँट रहा था और सन्ध्या-कालीन दरबार में भी बँटा !! बाबा जी को सब पता था ही । इसीलिए सुबह ही कह बैठे थे आज खूब प्रसाद बँटेगा !! (मुकुन्दा)

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