नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: सदगुरु के वचनों की अवज्ञा (दुष्परिणाम एवं रक्षा भी)

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: सदगुरु के वचनों की अवज्ञा (दुष्परिणाम एवं रक्षा भी)

बाबा जी महाराज की साधारण रूप से भी दिये गये आदेशो की अवज्ञा के कठिन (और कभी कभी घातक भी) परिणाम हो जाते थे । ऐसे अवज्ञा-परिणामों के कई दृष्टान्त हैं, जिनमें कुछ नीचे दिये जा रहे है ।

श्रीमती बसन्ती साह (नैनीताल जो भक्त समाज में दादी-अम्मा के नाम से जानी जाती है) महाराज जी की आज्ञा प्राप्त कर अन्य माइयाँ के साथ गंगोत्री-यमनोत्री यात्रा को गई थी । जाते वक्त महाराज जी मे सख्त हिदायत कर दी थी, बार बार, कि यमनोत्री मंदिर में रात को नीचे हनुमानचट्टी में उतर आना ।

परन्तु इनकी एक नेता माई ने इन लोगों को समझाया कि दो बजे रात वहाँ घंटे-घडियालों के साथ दिक-वादय-संगीत एवं नाद भी सुनाई देता है इसलिए हम रात को वहीं रुक जायें । (लेकिन इन्हें यह न मालूम था कि उस नाद को सहन कर पाने की शक्ति हर किसी में नहीं होती जिसके कारण ब्रह्मरेन्द्र फट जाने से मृत्यु भी हो जाती है, और कि रात्रि को वहाँ शेर भी आता है।

अस्तु, महाराज जी की आज्ञा न मानकर नाद सुनने के लोभ में दादी-अम्मा तथा अन्य माइयाँ उस नेता-माई के साथ रात को मंदिर में ही रुक गई । हजारों फीट की ऊँचाई की उस विकट ठंड में ये सब मोटे कम्बल ओढकर अपने को मुँह तक ढाँक कर लेट गई उस दिव्य ध्वनि को सुन पाने की आशा में ।

तभी एक साधु बाबा उस ठंड में भी केवल एक चादर ओढ़े वहाँ आ गये यह कहते हुए कि, "तुम्हें देख कर मुझमें भी साहस आ गया यहाँ रात बिताने का । वरना यहाँ रात को कोई नहीं रह पाता ।" आधी रात बीतने पर इन्हें सचमुच संगीतमय गाजे-बाजे भी सुनाई देने लगे और घंटे-घड़ियाल भी । परन्तु साथ में शेर की गुर्राहट के साथ बार बार पूँछ पटकने की आवाज भी !!

सुनकर इन सबको अत्यन्त भय व्याप गया मन में, और उस मानसिक अवस्था में नाद सुन पाने का कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता था । राम राम कर रात बिता ये सुबह लौट चली। साधू महाराज का कहीं पता न था !! 1.

और लौटते वक्त भी उनकी बस गैरसैंण नामक स्थान में एक खड्ड वाले मोड़ पर एक दूसरी बस से पूरी रफ्तार में ऐसी टकराई कि इनके बस की तेल-टंकी फट गई (पर आग न लगने पाई !) कुछ को इस टक्कर के कारण चोटें भी आई । किसी तरह ये पुनः कैंची धाम पहुँच गईं।

और वहाँ पहुँचने पर महाराज जी को प्रणाम करते ही पहिला आशीर्वाद जो मिला, वह था बाबा जी की गालियों का अम्बार, मेरी आज्ञा नहीं मानी । यमनोत्री में ही सब मर जाते ।" और कि, “अगर मैं बस के आगे न खड़ा हो जाता (उसे रोकने को) तो तुम सब खड्ड में गिर कर मर जाते ।"

दयानिधान की आज्ञा का उल्लंघन का केवल इतना सा दण्ड !!

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