नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भूखे भक्तों की चिंता
जैसा पूर्व में कहा जा चुका है कि महाराज जी की समस्त लीलायें उनकी जन जन के प्रति दया-क्षमा का ही निरूपण करती हैं । अपनी इस दया-क्षमा को रूप-स्वरूप देने के लिये कोई भी विधान, कोई भी नियम, कोई भी आचार संहिता, आदि उनके आड़े नहीं आ सकती थी ।
श्री धाम कैंची में गायत्री महायज्ञ के आयोजन के अन्तिम दिन अनेक गाँवों से हजारों की संख्या में ग्रामीण जनता युवती, - बाल-वृद्ध, युवक- भण्डारा-प्रसाद पाने के लिये आश्रम के प्रांगण में सुबह से ही एकत्र होने लगे थे । परन्तु कर्मकाण्डियों द्वारा विधाओं की पूर्ति में अत्यंत विलम्ब के कारण दोपहर बाद तक भी भण्डारा प्रारम्भ न हो सका ।
अपनी कुटी में बैठे बाबा जी जान गये कि गरीब जनता, जिसके लिये यह कर्मकाण्ड अरबी-फारसी के मानिन्द था प्रबन्धकों को बुलाकर पूछा - - भूख से हो चली है। व्याकुल क्या देर है भण्डारे में ? तो उत्तर मिला. "महाराज, अभी पूर्णाहुति नहीं हुई ।" बिगड़ गये बुरी तरह दयानिधान और डांट कर बोले, “क्या होती है पूर्णाहुति जब इतनी आत्मायें भूखी बैठी हैं? पूजा का भोग निकालकर खिलाओ इन सबको ।” ऐसा ही किया गया ।
इनमें से कितनों ने अन्तर में पुकारा होगा, "महाराज, बड़ी भूख लगी है - प्रसाद पवाइये !!"