नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: शिरडी साई बाबा, राम कृष्ण परमहंस का उदाहरण दे महाराज जी गुरु भक्ति को प्रेरित करते थे

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: शिरडी साई बाबा, राम कृष्ण परमहंस का उदाहरण दे महाराज जी गुरु भक्ति को प्रेरित करते थे

इसी प्रकार शिर्डी साई बाबा, श्री राम कृष्ण परमहंस, श्री रमण महर्षि आदि अवतारी विभूतियों के आश्रमों के प्रति उनके शिष्यों-अनुयायियों की निष्ठा-आस्था के भी उदाहरण देकर अपने परिकरों में गुरु-भक्ति गुरु-सेवा एवं गुरु-आश्रमों के प्रति निष्ठा जागृत करते रहते थे और स्वयं भी इन आश्रमों में जाकर ऐसे गुरु-भक्तों का उत्साह बढ़ाते रहते थे । ऋषिकेश के श्री शिवानन्द आश्रम मे जब भी गये यहाँ बाबा जी महाराज, की सूक्त वाणी में निहित सीखों से आश्रम वसियों के मन में अपने श्री गुरु के प्रति जागृत ज्योति और भी अधिक ज्योतिर्मय हो गयी।

वृन्दावन आश्रम में श्री कात्यायिनी मंदिर में अपने श्री सद्गुरु की वार्षिक पूजा हेतु राजस्थान के पुराने राज-परिवारों के कई सदस्य । पुरुष एवं महिलायें वर्ष २९७३ में एकत्र हुए थे। उनमें न्यायमूर्ति श्री सिंह जी भी (जो बाद में अन्तर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायालय - हेग, यूरोप में न्यायमूर्ति नियुक्त हो गये थे भी शामिल थे । सभी के आग्रह से श्री नागेन्दर जी बाबा जी महाराज को लिवाने वृन्दावन आश्रम आये ।

जब ये बाबा जी को लेकर कात्यायिनी मदिर आने लगे तो महाराज जी ने उनसे देव कामता दीक्षित जी को भी बुला लेने को कहा, और तब सब मंदिर आ गये। वहाँ सभी ने बाबा जी महाराज को दण्डवत प्रणाम किया और उन्हें एक उच्चासन पर आसीन कर दिया । तब सभी (तब के) राजाओं, रानियों, राजकुमारियों ने महाराज जी का पूजन किया, अर्चना की और आरती उतारी, भेंट अर्पण की ।

बाहर बैठे दीक्षित जी ने शंख-घंटा वादन आदि सुने और समझ गये कि महाप्रभु का आरती पूजन हो रहा है पर साथ में उन्होंने महिलाओं की सिसकियाँ भी सुनी और यही समझा कि भाव-विह्वल हो सब रो रही होगी।लौटते समय दीक्षित जी ने उनसे अपना कौतूहल कि महिलायें क्यों रो रही थी, व्यक्त किया तो बाबा जी बोले, "वे इसलिए रो रही थी कि अर्पित भेंट अब उतनी न थी जितनी कि (पूर्व में) हुआ करती थी (क्योंकि अब राज्याधिकार छीन चुके थे ) और भी की "इनके खानदानी गुरु एक बंगाली साधु थे जो ४०० वर्ष पूर्व हुआ करते थे परन्तु आज भी उनकी पारम्परिक गुरु- निष्ठा पूर्ववत बनी हुई है।"

गुरु-निष्ठा का ऐसा अपूर्व आचरण और गुरु के प्रति ऐसा भाव (वह भी समृद्ध रजवाड़ों के मध्य) जानकर, तथा यह भी जानकर कि आज के वही भाव अर्पण बाबा जी को कर रहे है दीक्षित जी गदगद हो उठे |

इसी संदर्भ में महाराज जी लल्लू दादा (दीक्षित जी) से यह कहते रहे अनेकों बार यहाँ तक कि दीक्षित जी को लगा कि क्या इसके सिवा बाबा जी के पास अन्य बात कहने को नही है) कि "धर्म के कार्यों में सहयोग अवश्य करते रहना चाहिए। यदि कोई न कर सके तो हो जाये परन्तु अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए. विरोध नहीं करना चाहिए। ऐसा करना (अड़ंगा लगाना) महापाप है जिसकी क्षमा नहीं है। बाबा जी द्वारा बार बार कही इस वाणी का महत्व दीक्षित जी अब भली भांति समझ गए थे।

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